नारी
नारी
तुम त्याग की मूर्ति हो
करुणा की प्रतिमूर्ति
अद्भुत तुम्हारा धैर्य ।
फिर
पता नहीं क्यों
तुम्हारे आने से
पड़ जाती है
घर में दरार
वातावरण में खटास ।
घट जाता है
भाई का भाई से प्यार
बढ़ जाती है तकरार ।
वो आँगन
चूल्हे-चौखट,
खेत-खलिहान ।
जो कभी थी एकता की मिसाल
आज पड़ गयी है दीवार ।
कसूर किसी का नहीं , सिर्फ हालात बदल जाते हैं . जो बेटा अब तक माता पिता की कमाई पर ही निर्भर था , अब जब वोह खुद कमाने और बीवी की जिमेदारी का बोझ संभालने को मजबूर हुआ तो सब कुछ बदल जाता है .
अच्छी कविता !