लघुकथा

फ़िक्र बच्चों की ……..

‘तुम अपना खाना अपने कमरे मे ही खाया करो,और हाँ आज से मै दुसरे कमरे मे सोऊंगा|’, हितेन ने अपनी पत्नी निशा से कहा| निशा को हितेन की बाते अंदर तक हिला गयी. इसी के कारण, मै इस जान लेवा और समाज मे हेय द्रष्टि से देखने वाली बीमारी से पीड़ित हूँ| हितेन अपना सारा दोष मेरे माथे मड कर खुद अपने को पाक साबित करना चाहता है|,

निशा लगातार बीमार रहने लगी|आज अस्पताल गयी तो डाक्टर ने सब जाँच करके बताया ” निशा जी आप एच् .आई .वी .से पीड़ित है|,निशा हतप्रभ हो गयी| तो डाक्टर ने बताया आपके पति की वजह से ही ये सब हुआ है| …आप घबराइए मत|

हितेन को डाक्टर ने ही बताया था कि आपके ससर्ग से आपकी पत्नी को भी बीमारी ने अपनी चपेट मे ले लिया है| निशा को हितेन ने जलील किया तो आज उसने जवाब दिया कि ”डाक्टर के बता देने पर भी मैंने आपसे कुछ नहीं कहा| मुझे अपने से ज्यादा अपने बच्चो की परवाह है| दुनिया वाले मेरे बच्चो को हेय दृष्टी से देखेगे इस बारे मे आप सोचते तो ऐसा घृणित काम करके हम सबकी जान खतरे मे नहीं डालते| पर अफ़सोस! आपको कोई फ़िक्र कभी नहीं हुई अपने परिवार और समाज की तो बच्चो की क्या फ़िक्र होती|

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

2 thoughts on “फ़िक्र बच्चों की ……..

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया लघु कथा !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बस पुर्ष परधान समाज! हर बात में दोष औरत का , बेटी हो तो तब भी जब कि अब सभी को पता है कि बेटा बेटी का होना पुर्ष के क्रोमोसोम ही निर्धारित करते हैं . और यह जो बहुत से मरद इधर उधर कमीनगी करके रोग लगा लेते हैं और बीवी को भी इस बीमारी का परसाद दे देते हैं और फिर इस का दोष भी औरत पर थोंप देते हैं , ऐसे लोगों को धिक्कार है .

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