कविता

हादसा

उस तरफ

सड़क के किनारे पर

उस टूटी सी पुलिया के करीब ही

एक बस पलट गयी

ज्यादा लोग नहीं थे

बस कुछ पच्चीस तीस

चीखना चिल्लाना रोना जारी था

एक बच्चा था कुछ १ साल का रहा होगा

जब बस पलटी तो लुढ़ककर
इसी घास के ढेर के बीच आकर गिर गया

कुछ देर रोया

पर चीखा नहीं

फिर स्तब्ध सा बैठा
एक तरफ टकटकी लगाये देखता रहा
पता नहीं किस औरत की लाश थी,

लाश थी? या अधमरी…

मालूम नहीं उसी तरफ देखता

कुछ लोग मदद के लिए आ गए थे,

दबे हुए लोगों को निकाल रहे थे

बच्चा थोड़ी दूरी पर ही था

उन्होंने उसे शायद नहीं देखा था

या देखा भी था तो अनदेखा कर दिया होगा

क्यूंकि वो रो नहीं रहा था,

हाथ पैर से सांवला सा था

कुछ काला सा भी

उसके बाल कुछ मटमैले रंग के थे

जिन्हें तेल से बड़ी सिद्दत से माँ ने संवारा होगा

हाँ उसकी आँखें बड़ी सुन्दर थीं

काली पुतलियां और एकदम साफ़ सफ़ेद आँखें

वो बस देख रहा था

टकटकी लगाये
उधर कुछ लोग
दबी हुयी उस औरत को निकाल रहे थे
जिसके पास ही एक और बच्चा पड़ा था

वो लथपथ था

उसके पास ही एक दूध से भरी बोतल पड़ी थी

वो बच्चा शायद घायल था

और दबी हुयी औरत शायद उसकी माँ रही होगी

वो जिन्दा थी, कुछ कुछ चीख रही थी

लोग उसे खींच रहे थे

बच्चा बेसुध पड़ा था

उसकी दूध की बोतल पर
सूरज की किरनें पड रही थीं

मैंने उस सांवले से बच्चे की विपरीत दिशा में जाकर देखा

असल में वो दूध की बोतल देख रहा था,

शायद वो भूखा था,

बहुत भूखा…
उसकी आँखों में इस दूध के लिए झटपटाहट थी

मैं स्तब्ध था,

समझ नहीं पा रहा था
इस देश में

बड़ा हादसा क्या है?
भूख या मौत?

_________सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

2 thoughts on “हादसा

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत करुणामय कविता. सोचने को बाध्य कर देती है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    करुणमई दास्तान , बस यह भारत महान ही तो है भाई .

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