हादसा
उस तरफ
सड़क के किनारे पर
उस टूटी सी पुलिया के करीब ही
एक बस पलट गयी
ज्यादा लोग नहीं थे
बस कुछ पच्चीस तीस
चीखना चिल्लाना रोना जारी था
एक बच्चा था कुछ १ साल का रहा होगा
जब बस पलटी तो लुढ़ककर
इसी घास के ढेर के बीच आकर गिर गया
कुछ देर रोया
पर चीखा नहीं
फिर स्तब्ध सा बैठा
एक तरफ टकटकी लगाये देखता रहा
पता नहीं किस औरत की लाश थी,
लाश थी? या अधमरी…
मालूम नहीं उसी तरफ देखता
कुछ लोग मदद के लिए आ गए थे,
दबे हुए लोगों को निकाल रहे थे
बच्चा थोड़ी दूरी पर ही था
उन्होंने उसे शायद नहीं देखा था
या देखा भी था तो अनदेखा कर दिया होगा
क्यूंकि वो रो नहीं रहा था,
हाथ पैर से सांवला सा था
कुछ काला सा भी
उसके बाल कुछ मटमैले रंग के थे
जिन्हें तेल से बड़ी सिद्दत से माँ ने संवारा होगा
हाँ उसकी आँखें बड़ी सुन्दर थीं
काली पुतलियां और एकदम साफ़ सफ़ेद आँखें
वो बस देख रहा था
टकटकी लगाये
उधर कुछ लोग
दबी हुयी उस औरत को निकाल रहे थे
जिसके पास ही एक और बच्चा पड़ा था
वो लथपथ था
उसके पास ही एक दूध से भरी बोतल पड़ी थी
वो बच्चा शायद घायल था
और दबी हुयी औरत शायद उसकी माँ रही होगी
वो जिन्दा थी, कुछ कुछ चीख रही थी
लोग उसे खींच रहे थे
बच्चा बेसुध पड़ा था
उसकी दूध की बोतल पर
सूरज की किरनें पड रही थीं
मैंने उस सांवले से बच्चे की विपरीत दिशा में जाकर देखा
असल में वो दूध की बोतल देख रहा था,
शायद वो भूखा था,
बहुत भूखा…
उसकी आँखों में इस दूध के लिए झटपटाहट थी
मैं स्तब्ध था,
समझ नहीं पा रहा था
इस देश में
बड़ा हादसा क्या है?
भूख या मौत?
_________सौरभ कुमार दुबे
बहुत करुणामय कविता. सोचने को बाध्य कर देती है.
करुणमई दास्तान , बस यह भारत महान ही तो है भाई .