गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : हमारे नाम का पौधा

हमारे नाम का पौधा लगाना अपने आँगन में।
हमारी याद में दीपक जलाना अपने आँगन में।

जो कोई ख़्वाब मेरी डूबती आँखों ने देखा था,
उसे हाथों से तुम अपने सजाना, अपने आँगन में।

हवाओं में तुम्हारी खुश्बू को महसूस कर लूंगा,
महकते फूल जैसे मुस्कुराना, अपने आँगन में।

मैं भी इंसान था, गलती हजारो मैंने भी कीं थीं,
अकेले खुद को न मुजरिम बनाना, अपने आँगन में।

मेरे खत और तस्वीरें, तेरी हमदर्द बन जायें,
उन्हें तुम चूमना, दिल से लगाना अपने आँगन में।

यहाँ आना, चले जाना, हक़ीक़त है ये सच्चाई,
नहीं इस बात को झूठा बताना, अपने आँगन में।

ये दुनिया बेमुरब्बत है, तुम्हे न “देव” जीने दे,
तभी तुम नाम को मेरे छुपाना, अपने आँगन में। ”

……………..चेतन रामकिशन “देव”

4 thoughts on “ग़ज़ल : हमारे नाम का पौधा

  • मीनाक्षी सुकुमारन

    मेरे खत और तस्वीरें, तेरी हमदर्द बन जायें,
    उन्हें तुम चूमना, दिल से लगाना अपने आँगन में।

    यहाँ आना, चले जाना, हक़ीक़त है ये सच्चाई,
    नहीं इस बात को झूठा बताना, अपने आँगन में।

    ये दुनिया बेमुरब्बत है, तुम्हे न “देव” जीने दे,
    तभी तुम नाम को मेरे छुपाना, अपने आँगन में। ”

    ……………….बेहद खूबसूरत

  • जय प्रकाश भाटिया

    अकेले खुद को न मुजरिम बनाना, अपने आँगन में।bahut khoob

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    ग़ज़ल अच्छी लगी .

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