कविता

पूस की सर्द रात

पूस की सर्द रातों में
जब लोग
दुबके होंगे रजाइयों में
तुम भी अपनी उँगलियों से
साकार कर रहे होगे
एक ठिठुरती सर्द शाम
की अनोखी दास्तान……
जिसमें कुछ अनमोल यादों की
सरगोसियाँ होंगी और होंगी
सर्द रातों की तन्हा टीस……
कोई तुम्हें देखता होगा जी भरकर
पर अफ़सोस, ये कब जान पाओगे तुम
पूस की सर्द रातों की बेचैनी ……
ऐसे ही जब तुम पढ़ रहे होगे
कुछ धुंधली पर रोचक तथ्य
दूर खड़ी तुम्हारे मासूम चेहरे को
निहारती हैं अपलक
पूस की सर्द रातों में ,
मैं और मेरी परछाई ……..!

संगीता सिंह ‘भावना’

संगीता सिंह 'भावना'

संगीता सिंह 'भावना' सह-संपादक 'करुणावती साहित्य धरा' पत्रिका अन्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कविता,लेख कहानी आदि प्रकाशित

3 thoughts on “पूस की सर्द रात

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कविता बहुत अच्छी लगी , उम्मीद है आगे भी पड़ने को मिलेगी .

  • मुकेश सिन्हा

    सुंदर

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी सामयिक कविता !

Comments are closed.