कविता

कविता : अहम्

चोट लगती है जब
किसी के अँहम को
तिलमिला जाता है
क्रोध में लाल-पीला हो
जला देना चाहता है
अपने आसपास सबकुछ
डगमगा जाते हैं लक्ष्य से
सोचने विचारने भी नहीं देता
और नचाता है कट्ठपुतली की तरह
अपने इशारों पर हमें
पूरा आधिपत्य जमा लेता है
फिर भी :–
क्यूँ है इतना प्रिय अँहम
जानते हुये भी कि ये
ले डूबेगा सबकुछ
तहस-नहस कर देगा
फिर भी हम नादान
जाने क्यूँ इसे अपने जीवन में
इतना महत्व दे देते हैं …

— प्रवीन मलिक

प्रवीन मलिक

मैं कोई व्यवसायिक लेखिका नहीं हूँ .. बस लिखना अच्छा लगता है ! इसीलिए जो भी दिल में विचार आता है बस लिख लेती हूँ .....

2 thoughts on “कविता : अहम्

  • विजय कुमार सिंघल

    अहंकार सभी बुराइयों का मूल है. अच्छी कविता.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    हर कोई कहता है , मैं ठीक हूँ , दुसरे सब गलत हैं , यही तो है अहंकार का कारण .

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