कविता

फूलों की बात

फूल तुम्हारा हर बार खिलना
पहली बार खिलने जैसा
कौतुक,अचरज और विस्मय से भरा
फूल तुम्हारा हर बार मुरझाना
जैसे अंतिम बार
विदा होना ……
इस खिलने और मुरझाने के मध्य
असंख्य वेदना और आनंद के मिले -जुले भाव ,
खिलते रहे मुरझाते रहे ….
कहना तो बस इतना है कि,
अगले फूलों के खिलने के मौसम से ,
मुरझाने के मौसम तक ..
वो जी खुशियों और आनंद के भाव
मचलता है उसे सूखने मत देना …
खिलने या मुरझाने के लिए ही सही
कुछ तो होगा साझा ,,,,
तेरे मेरे और इन फूलों के दरम्यान ……!!!

संगीता सिंह ‘भावना’

संगीता सिंह 'भावना'

संगीता सिंह 'भावना' सह-संपादक 'करुणावती साहित्य धरा' पत्रिका अन्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कविता,लेख कहानी आदि प्रकाशित

2 thoughts on “फूलों की बात

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया कविता !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

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