बच्चे, दिल के सच्चे
बच्चे,
दिल के सच्चे,
मासूम फ़रिश्ते,
जात, धर्म, मज़हब, से अनजान,
देश का भविष्य, अपने परिवार की जान ,
केवल इंसानियत ही जिनकी पहचान,
कुछ पढ़ाई , कुछ आपसी दोस्ताना लड़ाई ,
कुछ ज़िद,कुछ हरकते, कुछ शरारते,
फिर भी कितने अपने कितने प्यारे–
सब जिन्हे प्यार से दुलारते, पुकारते–
सबका प्यार पाने को सदा लालायित,
सब अपना प्यार लुटाने को कितने उत्साहित ,
पर यह क्या —
पाक धरती पर नापाक कत्ले आम,
वह भी इन मासूम फरिश्तो का..
खून की बहा दी नदियां, आंसूओं के बह गए सैलाब,
या खुदा, हे भगवान, हे परम पिता परमेश्वर,
सब को दे रहम का सबक, शांति का पाठ ,
इंसान इंसान से करे प्यार
सिर्फ प्यार
सिर्फ प्यार-
और ले आये स्वर्ग इस धरती पर–
और हर घर , हर परिवार ,समाज, हर देश,
बन जाये खुशियों का संसार …
१७/१२/२०१४ –जय प्रकाश भाटिया
शानदार कविता. बच्चे सचमुच दिल के सच्चे होते हैं.
Dhanyvad,
इस से ज़िआदा अतिअचार दुनिया में हो ही नहीं सकता . बच्चे मन के सच्चे ही होते हैं . मुझे एक पुरानी अंग्रेजी फिल्म याद आ गई . एक पांच छी वर्ष की गोरी लड़की एक अफ्रीकन लड़के के साथ खेलती रहती थी . एक दिन उस लड़की के पिता जो नहीं चाहता था कि उस की लड़की एक काले लड़के से दोस्ती रखे ने अपनी लड़की से पुछा ,” बेटा किया तू नहीं समझती कि यह लड़का तुम से भिन्न है “? वोह लड़की बोली , dad! ofcourse he is different , he is a boy . उस का पिता सुन कर हक्का बक्का रह गिया .
Very Nice example…