बाल कहानी – ओढ़ ली रजाई
वसंत आया।
चींटी के बच्चों ने कहा-‘‘मम्मी! हम कब तक अंधेरे में रहेंगे? हमें दुनिया देखनी है।’’
चींटी ने डाॅटते हुए कहा-‘‘चुप रहो। अभी तुम बच्चे हो। जब बड़े हो जाओगे, तब जाना।’’
एक बच्चे ने पूछा-‘‘माँ। हम बड़े कब होंगे?’’
चींटी ने कहा-‘‘अभी सो जाओ।’’
चींटी लोरी सुनाने लगी।
बच्चे लोरी सुनकर सो गए।
सुबह हुई।
चींटी ने कहा-‘‘मैं कुछ खाने को लाती हूँ। देर से लौटूंगी। तुम सब बाहर मत निकलना।’’
यह कहकर चींटी चली गई।
एक बच्चे ने कहा-‘‘सब उठो। जल्दी से मुंह-हाथ धो लो। आज हम भी घर से बाहर जाएंगे।’’
बच्चे खुशी-खुशी तैयार हो गए।
सब लाईन में चलने लगे।
एक बच्चा बोला-‘‘वाह! दुनिया कितनी बड़ी है। हवा चल रही है। हरियाली ही हरियाली है।’’
तभी दूसरा बच्चा चिल्लाया-‘‘अरे! देखो। ये क्या है? चिपचिपा है। लेकिन खुशबूदार है।’’
बच्चे दौड़कर गए।
किसी ने घूर कर देखा।
किसी ने छूकर देखा।
एक बच्चे ने उसे चख लिया।
बच्चे ने बताया-‘‘अरे! ये तो गुड़ है। मीठा है। जरा ध्यान से खाना। चिपक मत जाना।’’
बच्चों ने गुड़ खाया।
बड़ा मज़ा आया।
सब आगे बढ़ने लगे।
धान का खेत आया।
दूसरे बच्चे ने पूछा- ‘‘ये क्या है?’’
तीसरा बच्चे ने जवाब दिया-‘‘चलो। नजदीक जाकर देखते हैं।’’
धान की कुछ बालियाँ गिरी हुई थीं।
बच्चे टटोलने लगे।
चौथा बच्चा बोला-‘‘चलो इसका छिलका उतारते हैं।’’
सबने मिलकर धान का छिलका उतार लिया।
एक बच्चे ने कहा-‘‘अरे! ये तो चावल है। इसे खा सकते हैं।’’
बच्चे धान के बीज तोड़ने लगे।
सबने भर पेट चावल खाया।
बड़ा मज़ा आया।
फिर उन्हें चीनी के दाने मिले।
फिर गेंहूं के बीज मिले।
वह आगे बढ़े ही थे कि एक बच्चा फिर चिल्लाया-‘‘ सब यहां आओ। ये देखो। ये क्या है?’’
एक बीज डरा-सहमा हुआ था।
बीज मिट्टी से लथ-पथ था।
दूसरे बच्चे ने कहा-‘‘ ये तो बीज है। चलो इसका छिलका उतारते हैं।’’
तभी किसी ने पुकारा-‘‘यह बीज मेरा है। इसे छोड़ दो।’’
बच्चों ने नज़र उठाकर देखा।
आवाज कपास के एक पौधे से आई थी।
तीसरे बच्चे ने पूछा-‘‘कौन हो तुम?’’
पौधा बोला-मैं कपास हूँ। मैं भी कभी बीज था। आज देखो कितना बड़ा पौधा हूँ।’’
अचानक आसमान में बादल छाने लगे।
बिजली चमकने लगी।
बादलों की गड़गड़ाहट से बच्चे डर गए।
कपास का पौधा बोला-‘‘ओह! बादल घनघोर हैं। बारिश आने वाली है।’’
एक बच्चे ने कहा-‘‘उफ! हम घर से बहुत आगे आ चुके हैं। अब क्या होगा?’’
दूसरे ने कहा-‘‘हम तो भीग जाएंगे।’’
तीसरे ने कहा-‘‘हम बारिश में बह भी सकते हैं।’’
कपास का पौधा बोला-‘‘परेशानी की कोई बात नहीं। यहां चले आओ।’’
पौधे में कपास के फूल खिल रहे थे।
फूल रुई से भरे हुए थे।
कपास का पौधा बोला-‘‘डरो मत। मेरे फूलों की रुई नरम है। गरम है। आओ। इनके भीतर आ जाओ। जब बारिश रुक जाए, तब चले जाना।’’
बच्चे खुश हो गए।
सब ने जोर से कहा-‘‘थैंक्यू अंकल।’’
बच्चों ने दौड़ लगाई।
सब मुलायम रुई की रजाई ओढ़कर सो गए।
-मनोहर चमोली ‘मनु’
अच्छी बाल कहानी ! शिक्षाप्रद भी है !
ji aabhaar.