लघुकथा : मधुरिमा
ईश्वर ने अनुपम कृति बच्चों के रूप में अद्भुत उपहार के रूप में हमें प्रदान की है। एक छोटी सी घटना आज से दो वर्ष पूर्व दिल्ली में मेरे मायके में घटी। सर्दियों की एक शाम मेेरे पिता जी अचानक बीमार पड़ गए। रात होने तक उन्हें बेहोशी आने लगती। सुबह थोड़ा ठीक महसूस करने पर शाम होते होते उनकी तबियत खराब होती जाती। कुछ समझ नहीं आ रहा था, उनकी किडनी पर असर हो रहा था। घर में छोटे बच्चे उनकी तबियत खराब होने पर दुखी थे पर उन्होंने आपस में मिलजुल कर उनका लैपटाॅप हथिया लिया। घर में सभी बड़े चिंतित थे। डाॅक्टरों से कंसल्ट किया और अगले दिन उन्हें मैक्स में एडमिट करने का निर्णय लिया। उनके अस्पताल जाने के एक शाम पहले हम बातचीत कर रहे थे।
तभी मेरे भाई की नन्हीं सी बेटी परी को उसके बड़े भाइयों ने दादा जी के पास भेजा जिनमें मेरा बेटा भी शामिल था। हम सभी वहीं चिंतित विचार विमर्श कर रहे थे कि तभी हमने देखा। वो नन्हीं परी पिताजी के बैड के पास उनके मुंह पर झुककर जोर-जोर से उन्हें हिला रही थी और कह रही थी – ‘‘दादा जी आपके लैपटाॅप का पासवर्ड क्या है? तीन-चार बार उसने जोर देकर कहा- ‘‘ दादाजी प्लीज बताइए ना – आपके लैपटाॅप का पासवर्ड क्या है।’’ मेरे पिता जी लगभग बेहोशी की हालत में थे, उन्होंने धीरे से उस बच्ची को पास वर्ड बता दिया। और वो उसे जोर से दोहरा कर तेजी से तीर की तरह अपने भाइयों के पास दौड़ी।
हम सभी गमगीन होते हुए भी उसकी इस हरकत पर इतनी जोर से हँसे कि उस शाम दुख थोड़ा कम हो गया और माहौल एक दम हल्का हो। बाद में पिता जी कईं दिनों तक बीमार रहे। पर अब वो स्वस्थ है। आज भी उस घटना को याद कर सब के चेहरे खिल उठते है।