कविता

साँप आस्तीन का

aasteen ka ssap

पालते हो साँप आस्तीन में, उम्मीद सुधा की रखते हो।
बोते हो पेड़ बबूल का, उम्मीद आम की रखते हो॥

इंसा को इंसा कब समझा तुमने, दिखावे को बस रोते रहो।
ऊपर से आँसू बहाकर घड़ियाली, दिल में हँसी रखते हो॥
पालते हो साँप आस्तीन में……..

घर लुटते रहे जब तलक पड़ोसी के, चैन से तुम सोते रहो।
सेंध लगी जब खुद के घर में, क्यूँ आँख में आँसू रखते हो॥
पालते हो साँप आस्तीन में……..

नासमझी ही समझी जाएगी तुम्हारी, आतंक को गर सँजोते रहो।
क्यूँ शिकायत है सीने में जलन की, जब दिल में आग रखते हो॥
पालते हो साँप आस्तीन में……..

अब तो छोड़ो इस वहशीपन को, न खून के धब्बे धोते रहो।
खत्म हो सकती है दहशतगर्दी, गर नीयत बे-खोट रखते हो॥
पालते हो साँप आस्तीन में……..

2 thoughts on “साँप आस्तीन का

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा गीत !

    • अंशु प्रधान

      धन्यवाद सर

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