नफरत के बीज
प्यार के फूल खिलाकर देख !!
एक ही मजहब है सबका,
इंसानियत अपनाकर देख !!
बिना प्यार के सूना जीवन,
धरती प्यासी,बिन सावन !!
नफरत के बीज निकाल मन से,
प्यार के फूल खिलाकर देख !!
कोई नहीं इस जग मैं ऐसा,
जिसे प्यार की चाह न हो !!
दीप जला प्यार का मन मैं,
मन को मंदिर बनाकर देख !!
नफरत के बीज निकाल मन से,
प्यार के फूल खिलाकर देख !!
सब के मन मैं एक ही ईश्वर,
मन से नफरत हटाकर देख !!
जाति-धर्म से उठकर ऊपर,
सबको गले से लगाकर देख !!
नफरत के बीज निकाल मन से,
प्यार के फूल खिलाकर देख !!
“अाशा” है माहोल चुनावी तो,
सियासत होना लाज़मी है !!
भुलाकर मन से भूख सत्ता की,
भावना देश-भक्ती की जगाकर देख !!
…राधा श्रोत्रिय “आशा”
काश ! ऐसी भावना हर मन वस् जाए .
बहुत खूबसूरत कविता.
ji shukriya..