कविता : रिश्ते
गलतियों की मांफी अपनों से ही मांग अटूट करते है रिश्ता
धन्यवाद भी कह नही आँका जा सकता कोई रिश्ता
आँखों में जो बसते है अपने होके वह दिल में उतर जाते है
आंसुओ में कैसे बहेगे रिश्ते वह तो दिल में पैठ कर जाते है |
सविता मिश्रा
गलतियों की मांफी अपनों से ही मांग अटूट करते है रिश्ता
धन्यवाद भी कह नही आँका जा सकता कोई रिश्ता
आँखों में जो बसते है अपने होके वह दिल में उतर जाते है
आंसुओ में कैसे बहेगे रिश्ते वह तो दिल में पैठ कर जाते है |
सविता मिश्रा