कविता : रौशनी
आखिर कब तक रखोगे
मुझे कैद अपनी बाहों में ।
देख लेना
एक दिन मैं फैलाऊंगी रौशनी
हर उस चौखट पर
जहां वर्षों से अँधेरा है ।
मित्र !
मैं भी चाहता हूं
तुम फैलाओ रौशनी
इस जहां में ।
किन्तु
अभी मैं तुम्हे बचा रहा हूं
उन आंधियों से
जो आमादा है
तुम्हारा अस्तित्व मिटाने को ।
बहुत खूब .
अच्छी कविता !
प्रशंसनीय रचना , बधाई एवं धन्यवाद।