पात्रता
उपदेशक अनेक श्रोताओं को समान रूप से उपदेश देते हैं परन्तु उनमें से कुछ लोग ही सार्थक तत्त्व ग्रहण कर पाते हैं और इस ग्रहण करने में भी अन्तर होता है। यह बात लोगों की पात्रता पर निर्भर करती। यह पात्रता किसी पात्र या बर्तन के द्वारा द्रव को अपने अन्दर धारण करने की क्षमता के समान है। यह एक प्रकार की योग्यता भी कही जा सकती है। पात्रता का जितना व्यावहारिक जगत् में महत्त्व है उससे अधिक महत्त्व आध्यात्मिक जगत् में है। संसार में पात्रता के बगैर कभी- कभी लोग पद व प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेते हैं परन्तु आध्यात्मिक क्षेत्र में पात्रता को सिद्ध किए बिना कुछ प्राप्त करना सम्भव नहीं है। शास्त्रों में कहा गया है कि विद्या से विनय की प्राप्ति होती है और विनय से व्यक्ति पात्रवान् बनता है।
पात्रता पूर्वक धनोपार्जन करके उस धन का उपयोग धार्मिक कार्यों में करके सुख प्राप्त होता है। यदि पात्रता की प्राप्ति नहीं होती है तो धन का उपयोग अधर्म में होने से दुःख प्राप्त होता है। उपनिषदों में कहा गया है कि ब्रह्मविद्या प्राप्त करने के लिए उच्चतम पात्रता की आवश्यकता होती है। ब्रह्मविद्या का जानकार वही होता है जो ईश्वर के लिए समर्पित हो। ईश्वर की अनुभूति करने के लिए अनेक लोग प्रयास करते रहते हैं किन्तु बिरले ही यथार्थ रूप में ईश्वर के निकट पहुंच पाते हैं या उसकी अनुभूति कर पाते हैं। इसका कारण साधकों में पात्रता का अभाव होना है।
संसार में दिखाई दे रही भौतिक वस्तुओं से मिलने वाले सुखों से अपने मन को हटाकर सर्वव्यापक परमात्मा में लगाना पड़ता है। ईश्वर अनुभूति के लिए परोपकारिता दयालुता आदि गुणों को धारण करते हुए जीवमात्र में ईश्वर की छवि देखने की दृष्टि पैदा करनी होती है। प्रत्येक साधक चाहता है कि उसे सुख की प्राप्ति हो। ऐसा सुख भौतिक वस्तुओं में नहीं है। यह तो ईश्वर की वास्तविक अनुभूति होने पर ईश्वर से ही प्राप्त हो सकता है, जिसके लिए यम, नियम आदि योग के आठों अंगों की साधना करते हुए समाधि लगानी पड़ती है। ज्ञान भक्ति और कर्म ऐसे उपाय हैं जिनसे पात्रता में वृद्धि की जा सकती है। जिस साधक को उसकी पात्रता को देखते हुए परमेश्वर चयनित कर लेता है उसे ही वह प्राप्त हो पाता है।
कृष्ण कान्त वैदिक
अच्छा लेख .
अच्छा लेख. धन, विद्या और शक्ति को सुपात्रों को ही दिया जाना चाहिए. कुपात्रों के हाथ में ये पहुँच जाने पर बहुत हानि करते हैं.
लेख का विषय सामयिक एवं प्रासंगिक है. लेख निर्दोष हृदय के पाठक को पात्रता ग्रहण करने की प्रेरणा करने में उपयोगी है। लेखक को बधाई।