यादों की पुरवाई
यादों की पुरवाई
आज फिर तेरी यादों की,
पुरबाई चली है !
महक उठी है,साँसें मेरी ,
आँखों में तेरी छवि है!
इश्क का रंग,जब चढा,
कद मेरा ,कुछ और बढा!
भूल गयी मैं , वज़ूद अपना,
तेरे रंग में खुद को रंगा !
प्यार में रिशतों का,
कहाँ मोल है!
मेल – मन से मन का ,
अनमोल है !
मिलना और बिछुडना,
ही जीवन है !
पर रूह से रूह का रिश्ता,
कायम है !
मोहब्बत खुदा की बख्शी,
नेमत है!
पर कहाँ सब पर उसकी,
रहमत है!
दिल के रिश्ते बनाना,
आसाँन नहीं है!
जुदाई, दुख , दर्द, तडप ,
इसके संगी-साथी है!
“आशा”किसी से दिल की,
लगन सच्ची है,
तो वीराने भी,मौसमें-बहार
लगते हैं!
– राधा श्रोत्रिय”आशा”
बहुत खूब .
बेहतर कविता !
उम्दा