कविता

जीवन – मृत्यु संवाद

एक दिवस—-

जीवन व मृत्यु में संवाद होने लगा

दोनों में कौन श्रेष्ठ ,वाद होने लगा,

बात बढ़ते-बढ़ते विवाद होने लगा

जीवन की हर बात का प्रतिवाद होने लगा |

 

अंतिम सत्य मृत्यु है, प्रचार होने लगा,

विपरीत वातावरण,जीवन भी निराश होने लगा,

मृत्यु के पक्ष में ही सरोबार होने लगा,

हर आस छोड़कर निढाल हो रोने लगा |

 

रोते-रोते उसको अचानक ,ये ख्याल आ गया

कर्म ही जीवन है , इसका भाव छा गया

निराश भावों को उसने , एक पल में भगा दिया

मृत्यु तो निष्क्रिय है, यह सबको बता दिया |

 

कर्म केवल जीव करता, जिंदगी की शान है

आत्मा भटकती रहती , मृत्यु के उपरांत है

जीव उसको आश्रय देता, जीवन की पहचान है

जीवन ही सर्व श्रेष्ठ है, सत्कर्म उसकी पहचान है |

 

डॉ अ कीर्तिवर्धन

One thought on “जीवन – मृत्यु संवाद

  • विजय कुमार सिंघल

    सरल कविता में गहरे भाव !

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