स्वरचित हाइकु
स्वर्ण पिंजरा
पराधीन आभास
कैद विहग
मन परिंदा
दूर सुदूर यात्रा
पल में करे
चौच में दाना
लंबी सुदूर यात्रा
पक्षी करते
मौन परिंदे
हरी दरख्त डाली
घरौंदे बुने
प्यार की भाषा
मूक विहग खग
मौन मुखर
प्यासे परिंदे
जल बिन तरसे
सूखे तलैया
मूक है पक्षी
तिनके चुनकर
सपने बोता
गीत विहग
करता कलरव
नीड बनाता
खग विहग
गाये प्रभाती गूँजे
सुहानी भोर
स्मृति पटल
यादो का ही पुलिंदा
अतीत जगा
शान्ति पुरोहित
धन्यवाद आदरणीय गुरमेल भाई साहब
हाइकु बहुत अच्छा लगा .