सामाजिक

बचपन क्यूँ नही रहा बचपन जैसा

बदलते परिवेश ने बच्चो के बचपन को अपने जाल में जकड़ लिया है| जब तक टीवी, मोबाईल और मायावी इंटरनेट नहीं था, तब तक ही बचपन था| तब उस जमाने में बच्चे खेल-कूद में अपना समय बिताते थे| जिससे उनका शारीरिक विकास तो होता ही था, आपस में मिल-जुल कर रहने की प्रवृति भी पुष्ट होती थी| तब खो-खो , कबड्डी, कंचा और भी अन्य लाभकारी खेल हुआ करते थे | लेकिन आज जमाना बदल गया है| आज तो चार वर्ष का बच्चा बिना मोबाईल के नही रह सकता| काफी हद तक इसमें माता-पिता का योगदान है| आजकल माता पिता दोनों कमाने बाहर जाते है| अति व्यस्तता के कारण बच्चे को मोबाईल देकर अपना पीछा छुडाना चाहते है| बच्चा पुरे दिन घर में अकेला या नौकरों के साथ रहता है और मोबाईल या कम्प्यूटर से चिपका रहता है| उसे कोई पूछने वाला नहीं होता है कि वह क्या देख रहा है, क्या कर रहा है| पुरे दिन नेट पर चैट से व् अन्य अवांछित साईट पर गतिविधि करते रहते है| ऐसे में कहाँ बचा रहता है उनका निश्छल और निर्दोष बचपन?
परिणामत: बच्चो का भविष्य भी चौपट हो जाता है बचपन तो खत्म होता ही है| क्यूँकि इन सब गतिविधियों में लिप्त रहकर बच्चे अल्पायु में ही व्यस्क हो जाते है| बच्चे देश का भविष्य होते है| आज के बच्चे ही कल देश के कर्णधार होते है| अभिभावकों को चाहिए कि वो काम के साथ-साथ समय निकाल कर बच्चो पर पूर्ण निगरानी रखे उन्हें अपना वक्त और प्यार देकर सही मार्ग पर चलने को प्रेरित करे| तो बच्चो का बचपन फिर से आ सकता है आजकल बच्चे जो भी मांग करते है अभिभावक बिना सोचे समझे तुरंत पूरी कर देते है ऐसे हालत में बच्चा जिद्दी हो जाता है और हर जायज-नाजायज मांग रखता रहता है| बच्चो के बचपन को बरकरार रखने के लिए अभिभावक को फिर से सोचना होगा जिससे कि उनका बच्चा बचपन में बच्चा ही रहे ना कि व्यस्क बने |
शान्ति पुरोहित

 

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

4 thoughts on “बचपन क्यूँ नही रहा बचपन जैसा

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख बहिन जी. आज बचपन का स्वरुप बहुत बदल गया है. जब मैं अपने बच्चों को अपने बचपन की बातें बताता हूँ, तो उनको सहसा विश्वास नहीं होता.

    • जी विजय कुमार भाई जी …अब समय बदल गया है …अपने वक्त की बाते कहाँ रही है

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    शान्ति बहन, सच में समय पिछले पचीस तीस वर्षों में दो सदिओं जितना आगे जम्प कर गिया है और हमारा जेनरेशन गैप इतना बड गिया है कि हमारा नए बच्चों से मेल नहीं हो पा रहा . यह तो अभी भी अच्छा है . मुझे तो डर है कि कहीं भविष्य में सकूल ही बंद ना हो जाएँ और सारी पड़ाई विडिओ कॉन्फ्रेंस के जरिये ना शुरू हो जाए जिस से सभी बच्चे घर बैठे ही टैली पे लैसन सुने और अगर कहीं कुछ पूछना पड़े टीचर से तो टीचर भी जवाब विडिओ पर ही दें .

    • नमस्कार गुरमेल भाई साहब …आप ने ठीक ही सोचा है …आने वाले समय में विडिओ कौंफ्रेस से ही पढ़ेंगे बच्चे

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