उपन्यास : देवल देवी (कड़ी ५)
3. आन्हिलवाड़ के अंतःपुर में पिता-पुत्री
राय कर्ण देव का अपना कक्ष। हाथ में मदिरा से भरा स्वर्ण गिलास। विचारमग्न होकर टहलते हैं। बीच-बीच में अधरों से गिलास लगाकर द्राक्ष का घूँट भरते हैं। द्वार से एक बालिका का प्रवेश, आयु यही कोई सात वर्ष के आस-पास। उसे आता देखकर द्वार पर खड़ी दासियों ने सर झुकाकर उसका अभिवादन किया। वह बालिका टहलते हुए राजा से द्राक्ष का गिलास लेकर एक तरफ रख देती है।
”ये क्या पुत्री तुम अब तक सोई नहीं।“
”नहीं पिताजी, पर क्या आप बता सकते हैं, आप इतनी रात तक क्यों जाग रहे हैं।“ बालिका की वाणी में गंभीरता थी।
”बस ऐसे ही पुत्री देवल, राजकार्य में कई अड़चने आती रहती हैं।“ राय कर्ण रेशमी बिछावन से बिछी मसहरी पर बैठते हुए बोले।
”मैंने सुना है महामंत्री जी रूष्ट होकर कहीं चले गए हैं।“ देवल मसहरी के सामने एक छोटे आसन पर बैठते हुए बोली।
”हाँ, पुत्री।“
”कुछ तो कारण रहा होगा उनका यूँ इस तरह रूष्ट हो जाने का।“
राय कर्ण चुप रहते हैं बस एक निश्वास लेते हैं।
”क्या ये सच है पिताजी, आप उनकी और उनके भाई की पत्नी को अंतःपुर में रखना चाहते थे। आन्हिलवाड़ की रानियाँ बनाकर।“
तनिक क्रोधिक होकर एक तेज आवाज में, ”ये क्या कहती हो देवल देवी, ये झूठ है। तुम न समझोगी, जाओ सो जाओ, अभी बच्ची हो।“
”क्या यह एक महाराज की आज्ञा है? पर इस समय में आन्हिलवाड़ के महाराज से नहीं अपितु अपने पिता से मिलने आई हूँ।“
”हाँ पुत्री, यह महाराज राय कर्ण देव की आज्ञा है। पर तुम्हारे लिए नही। तुम्हें इतनी कम आयु में राजनीति की चर्चा करते हुए देखकर बड़ा भला लगता है। सुनो पुत्री मंत्री माधव ने विश्वासघात किया है।“
”कैसा विश्वासघात, पिताजी।“
”आन्हिलवाड़ के लिए शत्रुओं का प्रबंध।“
“क्या यह सत्य है पिताजी ?”
”हाँ पुत्री, गुप्तचर सूचना लाया था। विश्वासघाती माधव ने दिल्ली के सुल्तान को यहाँ आमंत्रित किया है।“
”दिल्ली का सुल्तान!“ तनिक विस्मय से बोलती है देवलदेवी ”वही दिल्ली का सुल्तान जिसने देवगिरी को मटियामेट कर दिया। और वहाँ की राजकुमारी को विवाह करके ले गया।“
”हाँ पुत्री, पर तुम यह सब कैसे जानती हो। फिर कुछ सोचकर राजा हँसकर बोलता है। ओह मैं तो भूल ही गया था, तुम बुद्धि चार्तुय में पारंगत हो। इस आयु में ही। कदाचित तुम राजकार्य का बारीकी से निरीक्षण करती रहती हो।“
”हाँ पिताजी, पर एक जिज्ञासा शांत नहीं होती मेरी।“
”क्या?“
”यही आपने मंत्री के घर पर उनके अनुपस्थिति में सैनिक क्यों भेजे थे।“
”इसका कारण कमलावती है।“
”कौन माँ?“
”हाँ पुत्री, वो ऐसी स्त्री है जो किसी अन्य को अपने से अधिक सुंदर स्वीकार नहीं कर सकती। महारानी को माधव की पत्नी निजी परिचारिका के रूप में चाहिए थी।“
”और आपने माता की अनुचित बात मान ली। पर यह तो राजधर्म नहीं पिताजी।“
”हाँ पुत्री, कदाचित हम पत्नी प्रेम में राजधर्म भूल बैठे थे।“
”और अब आपकी इस भूल का भुगतान आन्हिलवाड़ करेगा। यहाँ की प्रजा करेगी। और कदाचित आपकी पुत्री दिल्ली के सुल्तान को उपहारस्वरूप भेंट कर दी जाएगी।“
”नहीं पुत्री, बस करो। हम प्रतिरोध करेंगे। आन्हिलवाड़ की सुरक्षा के लिए उद्योग करेंगे। अब तुम जाओ पुत्राी विश्राम करो मुझे राज्य की सुरक्षा के प्रबंध के बारे में सोचने दो।“
वह सात वर्षीय बालिका जो राय कर्ण देव की पुत्री और आन्हिलवाड़ की राजकुमारी देवल देवी है। पिता के कक्ष से आकर अपने कक्ष में रेशमी बिस्तर पर विचारमग्न लेट जाती है। कुछ समय बाद निद्रा उसे थपकी देकर सुला देती है। और उधर दिल्ली का सुल्तान अपने हरम में पहुँचता है। दिल में कमलावती के सहवास का तसव्वुर लिये हुए।
इस कड़ी से पता चलता है कि देवल देवी बचपन से ही बहुत बुद्धिमान और विचारशील थी. ऐसी पुत्री का पिता राज्य के प्रति इतना अनुत्तरदायी कैसे हुआ इस पर आश्चर्य है.
ha nishchit roop se deval devi kusagr budhi thi tabhi wo prtishodh le saki, aur uska pita aek asawdhan raja tha.