**मुक्तिगान**
मन करता है आज कलम से कोई मुक्तिगान लिखूं
कोरे कागज़ के पटल पर जीवनरंग बखान लिखूं
अपनी चेतनता लिए समेटे लिखूं कोई नवगीत पुनः
जागृति का संगीत पुनः हार पुनः और जीत पुनः
संस्कृति के उजड़े घर पर मर्यादा का जलपान लिखूं
सभ्यता के फटे वसन पर वासना के निशान लिखूं
मन करता है आज कलम से कोई मुक्तिगान लिखूं
अविरल सा बहता सत्य लिखूं, लिखूं ह्रदय की बात
भावुक तूफानों से उजड़े घर या लिखूं मैं झड़ते पात
करूँ बात क्रंदन की या आनंद हास परिहास लिखूं
लिखूं कुठाराघात प्रिये का या टूटा विश्वास लिखूं
छंद छंद में अश्रु फूटें या हर पंक्ति मुस्कान लिखूं
या तो सीधा मरण लिखूं मैं या जीवन उत्थान लिखूं
मन करता है आज कलम से कोई मुक्तिगान लिखूं
कोरे कागज़ के पटल पर जीवनरंग बखान लिखूं
____सौरभ कुमार दुबे
बहुत खूब !