कविता

मत पूछ

मत पूछो
कहाँ खो रहा हूँ मैं
तनहा तनहा
क्यों रो रहा हूँ मैं
हो सकता है
कमी मुझमे ही रही हो
फिर भी
खीशिआं दूसरों में
क्यों खोज रहा हु मै

हमने तो
पत्थरों को भी
मोम बनाना सीखा था
बारिश और तूफ़ान में
हँसकर नहाना सीख था
पीते रहे गम
जो ज़िन्दगी देती रही
फिर भी
औरों को खुशीआं देकर
खुद का
सहारा खोज रहा हूँ मैं

मत पूछो
जो चेहरा कभी सोता न था
वो किस गम में सो गया
ज़माने की दी हुई चोट पे
खुद मरहम लगाके सो गया
सोचता रहा
शायद कोई मरहम पे
सहला दे स्नेह के हाथ
ज़ालिम था यह जमाना
चोट पर
नमक लगाकर छोड़ गया

मत पूछ
कहाँ खो रहा हूँ मैं
अभी भी
पुराने जखमो को
गम के आंसुओं से
धो रहा हु मैं
रो रहा हु मैं

(महेश कुमार माटा )

महेश कुमार माटा

नाम: महेश कुमार माटा निवास : RZ 48 SOUTH EXT PART 3, UTTAM NAGAR WEST, NEW DELHI 110059 कार्यालय:- Delhi District Court, Posted as "Judicial Assistant". मोबाइल: 09711782028 इ मेल :- [email protected]

One thought on “मत पूछ

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

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