कविता

मुक्तक

नव प्रवाह / धनक का धमक / जीत का ज्वल
हिय हर्षित / नीति रीति उज्ज्वल / जीव विह्वल
छटा कोहरा / जगी दबी इच्छायें / आस निहारे
स्वप्न धवल / ख्यालों-मुंडेरों सजे / वर्ष नवल

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

One thought on “मुक्तक

  • विजय कुमार सिंघल

    चार हाइकु मिलकर बना है यह मुक्तक ! वाह !

Comments are closed.