ईसाई समाज का नया नाम “नकलची समाज” होना चाहिए
इस फोटो में देखिये दिल्ली में 25 दिसंबर के दिन ईसाईयों ने क्रिसमस के अवसर पर गरीबों को चर्च बुलाकर ईसाई बनाने के लिए एक ओर नया फन्दा फैंका।
देखिये ईसाईयों की प्रचार विधि कैसी है?
1. पहले हिन्दुओं के समान गरीबों को “भण्डारे” का नाम देकर भोजन खिलाना, जिससे उन गरीबों को यह लगे की यह किसी मंदिर का भंडारा हैं।
2. फिर भंडारे में एक पत्रक बाँटना जिस पर लिखा होगा की केवल ईसा मसीह पापों से मुक्ति दिला सकता हैं और किसी की कोई भी समस्या जैसे बीमारी, बेरोजगारी, पारिवारिक कलेश, निस्संतान, विवाह में रूकावट, व्यापार में घाटा आदि हो तोचर्च आकर चंगाई प्रार्थना में अवश्य भाग लीजिये। आपके सारे कष्ट दूर हो जायेगे। कुल मिलकर चर्च आने का निमंत्रण देना।
3. ईसा मसीह के चमत्कारों को गाना और हिन्दू देवी देवताओं की बुराई करना।
4. अब भी काम न बने तो लोभ, प्रलोभन, नौकरी, पैसा, स्कूल में एडमिशन आदि का जाल।
ईसाई समाज के ठेकेदारों को यह समझना होगा कि “असत्य एवं अन्धविश्वास” की नींव पर टिकी ईमारत कभी भी गिर जाती हैं। इसीलिए यूरोप, अमेरिका आदि में ईसाई चर्च बिकने लगे हैं। ईसाई समाज उसमें प्रचलित चंगाई के अन्धविश्वास के अविश्वास के चलते तेजी से भोगवादी एवं नास्तिक बन रहा हैं। इसलिए यह धर्मान्तरण जैसे प्रपंच बंद करो और वेद विदित वैदिक सत्य सिद्धांतों को जीवन में अपना कर अपने
जीवन का कल्याण करने में सभी की भलाई हैं।
डॉ विवेक आर्य
हो सकता है आवश्यकता व गरीबी के चलते भोली भली जनता एक बार इनके झांसे में आ जाए व धर्म परिवर्तन भी कर ले पर मन का परिवर्तन इतना आसन नहीं है .. मन जड़ों में ही रमता है जिन जड़ों से आपकी उत्पति है
चंगाई की प्रार्थना अशिक्षित एवं भोले भाले लोगो के साथ छल है। यदि चंगाई प्रार्थना से रोग ठीक होते तो योरोप ही नहीं दुनिया के सभी देशों में कोई रोगी होता ही नहीं। यही बात अन्य समस्याओं के चंगाई प्रार्थना से ठीक होने पर भी लागू होती है. रोग आदि का कारन अज्ञानता के कार्य, असंतुलित भोजन एवं मनुष्य का प्रारब्ध है। बिना कर्म को भोगे और उपचार के कोई ठीक नहीं हो सकता। लेखक का लेख सत्य का प्रकाशन कर रहा है जिसके लिए वह बधाई के पात्र हैं।
सही बात। इसमें कोई शक नहीं है कि धर्मांतरण के लिए ईसाई सभी तरह के हथकंडे अपनाते हैं।