बेटियाँ
कौन कहता है बेटी बेटे से कम होती है
कौन कहता है बेटी बाप का गम होती है
बेटी तो वो उजाला है
जो छिन जाय तो आँखे नम होती हैं
बेटियां तो जान होती हैं
अपने पूरे परिवार की
बचपन में मायके की
योवन में ससुराल की
इनको तो जितनी भी दुआएं दी जाएँ
उतनी ही कम होती हैं
बेटे तो भँवरे होते हैं
आज यहां कल वहां होते हैं
मगर
बेटियां तो तुलसी का पौधा होती हैं
एक बार जहां उगती हैं
घर संसार को सूंदर करती हैं
फिर भी
संसार के सारे गम सहती हैं
हर सितम को मरहम कहती हैं
जाने क्यों
यह दुनिया
उनपे यह सितम करती है
बेटो को प्यार ज्यादा
और बेटी को कम करती हैं
इनको तो जितनी भी दुआएं दी जाएँ
उतनी ही कम होती हैं।
( महेश कुमार माटा )
कविता इतनी प्रिय लगी की वर्णन नहीं कर सकता। भारत के एक प्रसिद्ध धर्माचार्य ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि नरक का द्वार क्या है ? इसका उन्होंने स्वयं ही उत्तर दिया और कहा कि नारी नरक का द्वार है। महर्षि मनु ने श्रीशी आदिकाल में कहा था की जिस समाज वा देश में नारियों की पूजा व सम्मान होता है, वहां देवता निवास करते हैं. महर्षि दयानंद न कहा कि माता, पिता वा आचार्य संतानों वा शिष्यों के सच्चे देवता है। हमारा अध्ययन बताता है कि नारी नरक का नहीं अपितु स्वर्ग वा मोक्ष का द्वार है। नारी से हमें जन्म मिलता है। यह मनुष्य जन्म ही अभ्युदय और अपवर्ग अर्थात मोक्ष का द्वार है। अतः नारी वा बेटियों की महत्ता निर्विवाद है। कवि महोदय जी को हार्दिक बधाई।
धन्यवाद मित्र