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pk फ़िल्म पर मेरे विचार 

pk फ़िल्म पर मेरे विचार

अधिकतर हिन्दू संगठन pk फ़िल्म का विरोध कर रहे है। किसी का कहना है की यह धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचना है। किसी का कहना है कि इसमें शिव के वेश में एक व्यक्ति को भागते हुए दिखाना अशोभनीय है। किसी का कहना हैं की क्या आमिर खान में हिम्मत हैं की जैसे शिव को दिखाया है वैसे मुहम्मद साहिब को दिखाता तो मुसलमान उसका सर कलम कर देते। किसी का कहना हैं की हिन्दू लड़की का पाकिस्तानी लड़के से प्रेम दिखाना लव जिहाद को बढ़ावा देना है। किसी को आमिर खान के मुस्लिम होने और हज यात्रा करने पर आपत्ति हैं और किसी का कहना है की फ़िल्म में 80% से अधिक हिन्दुओं के विरुद्ध कहा गया हैं जबकि इस्लाम और ईसाईयत के विरुद्ध बहुत कम दिखाया गया है।

मेरे विचार इस विषय में कुछ भिन्न है। कुछ विषयों पर सहमति है और कुछ विषयों पर मतभेद है जिन्हें मैं यहाँ पर लिख रहा हूँ।

1. फिल्म में तर्क के माध्यम से धर्म के नाम पर किये जाने वाले कृत्यों की समीक्षा करने का सन्देश दिया गया है जोकि स्वागत योग्य है। न्याय दर्शन में तर्क को सबसे बड़ा ऋषि कहा गया है। तर्क सत्य और असत्य में भेद करने में सहायक है। संसार में किसी भी मत में धर्म के नाम पर अनेक अन्धविश्वास प्रचलित है। उनकी समीक्षा करने में कोई बुराई नहीं है। आधुनिक भारत में स्वामी दयानंद सर्वप्रथम ऐसे महापुरुष है जिन्होंने धर्म के नाम पर प्रचलित मान्यताओं को तर्क के तराजू में तोल कर ग्रहण करने का सन्देश दिया एवं सत्य के ग्रहण करने एवं असत्य के त्याग का उद्घोष दिया। अगर मान्यताएँ वैज्ञानिक है और सत्य पर आधारित है तो उनकी समीक्षा करने में कोई बुराई नहीं है। सोना तप कर कुंदन बनता है। सभी जानते हैं की जूठ के पाँव नहीं होते इसलिए धार्मिक कर्मकांडों एवं मान्यताओं की समीक्षा से उन्हीं को भय होगा जिनकी मान्यता या तो निराधार होगी अथवा असत्य पर टिकी होगी। इस फिल्म में यही सन्देश सरल शब्दों में दिया गया है। इस विषय को लेकर वही लोग असहज है जो यह मानते है की किसी भी अन्धविश्वास की समीक्षा नहीं करनी चाहिए और यह बहाना बनाते है कि इससे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचती है। मगर पहले यह सोचिये की धार्मिक भावनायें है क्या? क्या वर्षा न होने पर कुत्ते के साथ कुँवारी लड़की का विवाह करना धार्मिक कृत्य है? क्या लड़का न होने पर किसी अन्य के लड़के की नरबलि देना धार्मिक कृत्य है? क्या भगवान को प्रसन्न करने के लिए निरीह पशुओं की बलि देना धार्मिक कृत्य है? क्या सकल जगत को अन्न प्रदान करने वाले ईश्वर की मूर्ति को दूध पिलाने के नाम पर सड़कों पर हज़ारों लीटर दूध को बहाना धार्मिक कृत्य है? क्या धर्म के नाम पर अपनी मान्यताओं में हाँ में हाँ मिलाने वाले को मित्र एवं ना करने वाले को शत्रु कहने वालो की समीक्षा करना गलत है? क्या ईश्वर के स्थान पर गुरुओं को बैठा कर उनकी पूजा करने जैसे पाखंड की समीक्षा करना क्या गलत हैं? धर्म के नाम पर लोभ, प्रलोभन, छल, बल आदि द्वारा धर्मान्तरण करने की समीक्षा करने को आप गलत कैसे कह सकते है। उत्तर स्पष्ट है नहीं। फिर ऐसे कृत्यों की समीक्षा करने वाले का विरोध करना गलत ही तो कहा जायेगा। इसलिए हमें तर्क के आधार पर समीक्षा का स्वागत करना चाहिये। तर्क का विरोध करना ठीक वैसा हैं जैसा मस्जिदों में सुना जाता है की मज़हब के मामले में अक्ल का दखल नहीं होना चाहिये।
2. यह फ़िल्म धर्म और मज़हब/मत या सम्प्रदाय में भेद करने में असफल रही है।  फ़िल्म क्या अपने आपको धार्मिक कहने वाले 99.9% लोग इस तथ्य से आज भी अनभिज्ञ है कि धर्म और सम्प्रदाय में अंतर क्या है? धर्म संस्कृत भाषा का शब्द है जोकि धारण करने वाली धृ धातु से बना है। “धार्यते इति धर्म:” अर्थात जो धारण किया जाये वह धर्म है अथवा लोक परलोक के सुखों की सिद्धि हेतु सार्वजानिक पवित्र गुणों और कर्मों का धारण व सेवन करना धर्म है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते है की मनुष्य जीवन को उच्च व पवित्र बनाने वाली ज्ञानानुकुल जो शुद्ध सार्वजानिक मर्यादा पद्यति है वह धर्म है। मनु स्मृति में धर्म के दस लक्षण धैर्य,क्षमा, मन को प्राकृतिक प्रलोभनों में फँसने से रोकना,चोरी त्याग,शौच,इन्द्रिय निग्रह,बुद्धि अथवा ज्ञान, विद्या, सत्य और अक्रोध। स्वामी दयानंद के अनुसार धर्म जो पक्षपात रहित न्याय, सत्य का ग्रहण, असत्य का सर्वथा परित्याग रूप आचार है। धर्म क्रियात्मक वस्तु है जबकि मत या मज़हब विश्वासात्मक वस्तु है। धर्मात्मा होने के लिये सदाचारी होना अनिवार्य है जबकि मज़हबी होने के लिए किसी विशेष मत की मान्यताओं का पालन करना अनिवार्य है उसका सदाचार से सम्बन्ध होना अथवा न होना अनिवार्य नियम नहीं है। धर्म में बाहर के चिन्हों का कोई स्थान नहीं है जबकि मजहब में उससे सम्बंधित चिन्हों को धारण करना अनिवार्य है। धर्म मनुष्य को पुरुषार्थी बनाता है क्यूंकि वह ज्ञानपूर्वक सत्य आचरण से ही अभ्युदय और मोक्ष प्राप्ति की शिक्षा देता है जबकि मज़हब मनुष्य को आलस्य का पाठ सिखाता है क्यूंकि मज़हब के मंतव्यों मात्र को मानने भर से ही मुक्ति का होना उसमें सिखाया जाता है। धर्म मनुष्य को ईश्वर से सीधा सम्बन्ध जोड़कर मनुष्य को स्वतंत्र और आत्म स्वालंबी बनाता है क्यूंकि वह ईश्वर और मनुष्य के बीच में किसी भी मध्यस्थ या एजेंट की आवश्यकता नहीं बताता परन्तु मज़हब मनुष्य को परतंत्र और दूसरों पर आश्रित बनाता है क्यूंकि वह मज़हब के प्रवर्तक की सिफारिश के बिना मुक्ति का मिलना नहीं मानता, किसी गुरु या मध्यस्थ की कृपा के बिना मुक्ति का मिलना नहीं मानता। धर्म दूसरों के हितों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति तक देना सिखाता है जबकि मज़हब अपने हित के लिए अन्य मनुष्यों और पशुयों की प्राण हरने के लिए हिंसा का सन्देश देता है। धर्म मनुष्य को सभी प्राणी मात्र से प्रेम करना सिखाता है जबकि मज़हब मनुष्य को प्राणियों का माँसाहार एवं अन्य  मतवालों से द्वेष और घृणा करना सिखाता है। धर्म मनुष्य जाति को मनुष्यत्व के नाते से एक प्रकार के सार्वजानिक आचारों और विचारों द्वारा एक केंद्र पर केन्द्रित करके भेदभाव और विरोध को मिटाता है जिसका उद्देश्य एकता का पाठ पढ़ाना होता है जबकि मत/मज़हब अपने भिन्न भिन्न मंतव्यों और कर्तव्यों के कारण अपने पृथक पृथक जत्थे बनाकर भेदभाव और विरोध को बढ़ाते है और एकता को मिटाते है। धर्म एक मात्र ईश्वर की पूजा बतलाता है जबकि मज़हब ईश्वर से भिन्न मत प्रवर्तक/गुरु/मनुष्य आदि की पूजा बतलाकर अन्धविश्वास फैलाते है। धर्म और मज़हब के अंतर को ठीक प्रकार से समझ लेने पर मनुष्य श्रेष्ठ एवं कल्याणकारी कार्यों को करने में पुरुषार्थ करेगा तो उसमें सभी का कल्याण होगा। आज संसार में जितना भी कट्टरवाद है, जितना भी पाखंड है और जितनी भी अज्ञानता है उसका कारण मत/मज़हब में विश्वास करना है न की धर्म का पालन है। इस फ़िल्म के माध्यम से इस महत्वपूर्ण तथ्य को बताना चाहिए था। फिल्म बनाने वालो ने यह तो बता दिया की असत्य क्या हैं मगर यह नहीं बता पाया की सत्य क्या है। सत्य धर्म हैं और असत्य मत.मतान्तर की संकीर्ण धारणा है।
3 . जब अक्षय कुमार कि  ओ माई गॉड (OMG) फ़िल्म आई थी तब विषय एक ही होने के बाद भी उसका इतना विरोध नहीं हुआ था क्यूंकि उसके अभिनेता अक्षय कुमार हिन्दू धर्म से सम्बंधित है। इस फ़िल्म का विरोध आमिर खान से सम्बंधित होने के कारण ज्यादा हो रहा है। इस मानसिकता से हमें बचना चाहिए।
4. फ़िल्म आस्था और श्रद्धा पर प्रश्न तो करती है मगर भटके हुओं को रास्ता दिखाने में असफल हो जाती है जब आमिर खान यह कहता हैं कि मुझे ईश्वर के विषय में नहीं मालूम। इस प्रकार से यह फ़िल्म अन्धविश्वास से छुड़वाने का सन्देश तो देती हैं मगर जिज्ञासु प्रवृति के व्यक्ति को असंतुष्ट कर नास्तिक बनने की प्रेरणा देती है। यह इस फ़िल्म की महत्वपूर्ण कमी हैं जिसका समाधान अवश्य होना चाहिये था।

जिस दिन धार्मिक कहलाने वाले सभी लोग अपनी मान्यताओं में से अन्धविश्वास को निकाल कर विशुद्ध धर्म का पालन करना आरम्भ कर देंगे उस दिन pk जैसी फिल्में अपने आप बननी बंद हो जायेगी। इसलिए pk का विरोध समाधान नहीं है अपितु तर्क के आधार पर सत्य को ग्रहण करना एवं असत्य का त्याग करना उचित समाधान है और विरोध के चक्कर में जिस दिन मानव जाति ने तर्क का गला दबा दिया उस दिन से मानव की आध्यात्मिक उन्नति रुक जाएगी।

डॉ विवेक आर्य

4 thoughts on “pk फ़िल्म पर मेरे विचार 

  • फ़िल्म आस्था और श्रद्धा पर प्रश्न तो करती है मगर भटके हुओं को रास्ता दिखाने में असफल हो जाती है जब आमिर खान यह कहता हैं कि मुझे ईश्वर के विषय में नहीं मालूम। इस प्रकार से यह फ़िल्म अन्धविश्वास से छुड़वाने का सन्देश देती हैं मगर जिज्ञासु प्रवृति के व्यक्ति को असंतुष्ट कर नास्तिक बनने की प्रेरणा देती है। यह इस फ़िल्म की विशेष कमी हैं जिसका समाधान होना चाहिये।………school jaane se pahale jaise bachche ko dress pahanana padata hai ….laal ..nila ..pila ..hara ..koi bhi rang ka ….dhrm vahi dress hai jiske jariye ham is sansaar rupi pathshaala me baithkar ….aastha ,naitiktaa ,vishvas , ,ahinsa ,karunaa ,sneh ,prem ….ki kitaabon ko padhate hai ..lekin ye duniyaan aesi hai jahaan in kitabon ko padhane se unhe aachran me utaarane se ..dhan nahi milta …roti nahi milti …ishvar ko bhi jaan lene se koi dhanvaan nahi ho zata .isliye log jhuth ka hinsa ka ,,aadmbar ko apnaate hai ………..aur chhote se jivan me ghar ,parivaar tak hi simit rah kar is sansaar se bida ho zaate hai …………..ishvar hai …use mahsus kiye bina hi pura jivan bita dete hai
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  • जवाहर लाल सिंह

    जब अक्षय कुमार कि OMG फ़िल्म आई थी तब विषय एक ही होने के बाद भी उसका इतना विरोध नहीं हुआ था क्यूंकि उसके अभिनेता अक्षय कुमार हिन्दू धर्म से सम्बंधित है। इस फ़िल्म का विरोध आमिर खान से सम्बंधित होने के कारण ज्यादा हो रहा है। इस मानसिकता से हमें बचना चाहिए।

    आपके अन्य विचारों से भी सहमत!

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      जवाहर लाल सिंह जी , मैं आप से सहमत हूँ . अगर यही फिल्म अक्षय ने बनाई होती कोई बात भी नहीं करता . ऐसे इतनी बातें हैं कि लिखता ही जाऊं लेकिन यह लोग मानेगे नहीं . दासी प्रथा को चलते रहने से धर्म अपवित्र नहीं होता , किसी दलित को मंदिर से बाहिर निकालने पर धर्म शुद्ध होता है लेकिन अमीर खान कोई फिल्म बनाए तो धार्मिक भावनाओं को ठेस पौह्न्चती है . वाह जी वाह !

      • जवाहर लाल सिंह

        समर्थन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय गुरमेल सिंह जी!

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