टुनिया की सूझबूझ ( बाल कथा )
माँ कब से आवाज़ लगा रही थी। टुनिया को न जाने सुनाई दे भी रहा था भी कि नहीं। रज़ाई में दुबकी पड़ी थी। उसके दोनों भाई -बहन स्कूल के लिए तैयार हो गए थे। और वह अभी तक उठी ही नहीं थी।
माँ भी क्या -क्या करे सुबह -सुबह। कितने काम होते हैं। बच्चों को उठाओ। उनके कपड़े निकल कर दो। फिर उनके टिफिन भी तैयार करो।
” टुनिया !” माँ अब जोर से बोली।
टुनिया ने धीरे से आँखे खोली और कहा कि उसके बदन में दर्द है वह उठ ही नहीं पा रही है। माँ ने छुआ तो देखा उसका बदन तो बहुत गर्म था। बुखार हो गया था टुनिया को। माँ ने माथा सहलाते हुए उसे सोये रहने को कहा और उसके भाई -बहन को स्कूल के लिए रवाना कर दिया।
टुनिया को दवाई दे कर माँ ने उसे सुला दिया। घर के काम में व्यस्त हो गयी। उसे नींद तो नहीं आ रही थी लेकिन बुखार की वजह से आँखे भी नहीं खुल रही थी। माँ के काम करने कि खटर -पटर उसे सुनायी दे रही थी। माँ शायद बाबूजी के लिए खाना तैयार कर रही थी। उनके ऑफिस जाने का समय हो रहा था।
बाबूजी ने ऑफिस के लिए निकलते हुए टुनिया को दुलराया और चल दिए। तभी उसे माँ से कोई जोर से बोलते हुए एक शोर सा सुनाई दिया। उसने ध्यान दिया कि कोई मांगने वाली थी जो उसकी माँ से अनुनय कर रही थी कि वे बहुत भूखी है कुछ खाने को दे दे। उसकी माँ रसोई में चल दी ,जो रोटी खुद के लिए बनाई थी वे देने के लिए।
दरवाज़े पर पहुंची तो कोई नहीं था। जाने कहाँ चली गई वे दोनों औरतें। टुनिया की माँ बड़बड़ाते हुए लौटी कि अच्छा मज़ाक है पहले मांगती है फिर खुद ही गायब हो गई। उसके पास कोई और काम नहीं है क्या !
अब तक दवाई का असर होने लगा था। टुनिया बिस्तर छोड़ कमरे से बहार आ गई। माँ ने कहा कि वह ड्राईंग -रूम में बैठ जाये। वहाँ खिड़की से धूप आएगी तो उसे अच्छा लगेगा। आँगन में तो हवा भी चल रही है।
वह सोफे पर चुप कर के लेट गई। उसकी आँखे कभी मुंद रही थी तो कभी खुल रही थी। अचानक उसे सामने की दूसरी खिड़की पर लगा पर्दा हिलता हुआ दिखा और नीचे दो जोड़ी पैर दिखे। वह घबरा गई।
वह छोटी तो थी लेकिन इतनी भी नहीं कि समझ ना रखे। वह समझ गयी कि ये हो न हो वो दोनों मांगने वाली औरतें ही है। माँ जब रोटी लेने गयी तब ये अंदर आ कर पर्दे के पीछे छुप गई होंगी। वह चुपके से उठी और माँ को धीरे से जा कर सब बता दिया। अब माँ भी घबरा गयी।
टुनिया को माँ ने चुप रहने का इशारा करते हुए उसका हाथ पकड़ कर जल्दी से घर के बाहर आ गई। बाहर आकर पड़ोस के लोगों को इकट्ठा किया और सारी बात बताई। घर में जा कर माँ ने खिड़की से पर्दा हटा दिया। अचानक पर्दा हटाया तो वे औरतें डर गयी। उनके पास चाकू और घास काटने वाली दरांती बरामद हुई।
पुलिस उन औरतों को हिरासत में लेते हुए आस-पास खड़े सभी लोगों से सावधान रहने का सबक देते हुए चल पड़ी। और टुनिया की बहुत सराहना की कि उसकी सूझबूझ से एक लुटेरा गिरोह को पकड़वाने में बहुत मदद की है। सभी टुनिया की सूझबूझ की प्रशंसा कर रहे थे। माँ को अपनी बेटी पर नाज़ हो रहा था।
उपासना सियाग
( चित्र गूगल से साभार )
बहुत अच्छी बाल कथा !