कविता

मां ! तुम कितनी अच्छी हो-1

(यह मार्मिक कविता कोख में एक लड़की का अंतिम बयान है.)

मां ! तुम कितनी अच्छी हो,

तुम दूरदृष्टा हो, तुम अन्तर्यामी हो,

तुम ममता की स्वामी हो,

तुम करुणा की अवतार हो,

तुम दया का भण्डार हो,

तुम बहुत हो प्यारी,

जो कोख में ही मेरे टुकड़े टुकड़े करने की,

धरती के भगवान डॉक्टर को दे दी सुपारी,

मेरे लिए तो वह भी नहीं है हत्यारी,

वह तो करुणा की अवतार है,

मेरे लिए तो तारणहार है,

तुमने तो बहुत अच्छा किया,

पापा, दादी, नानी, बुआ, मौसी की

अच्छी सीख तुरन्त मानी,

अपने ही पेट में इस पाप को नष्ट करने की ठानी,

बात घर की घर में रह जाएगी,

दुनिया जान भी नहीं पाएगी,

कि तू अपने खानदान को एक अदद बेटा भी नहीं दे सकी,

मां, तुम कितनी अच्छी हो !

One thought on “मां ! तुम कितनी अच्छी हो-1

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    आज का दुखद वातावरण .

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