कविता

लेकिन तुम्हें याद करते ही –

क्या मै ठीक ठीक वहीँ  हूँ  जो मैं  होना चाहता था 

या हो गया हूँ  वही जो मै अब होना चाहता हूँ  
काई को हटाते ही जल सा स्वच्छ  
किरणों से भरा उज्जवल 
या बूंदों से नम ,हवा मे बसी  मिट्टी की सुगंध 
या सागौन  के पत्तो से आच्छादित भरा भरा सा ,सूना हरा वन 
मैं  सोचता हूँ  मैं  योगीक हूँ  
अखंड ,अविरल ,-प्रवाह हूँ  
लेकीन तुम्हें याद करते ही – 
जुदाई में  …..
टीलो की तरह रेगिस्तान में  भटकता हुआ  नजर आता हूँ  
 पसीने से तर हो जाता हूँ  
स्वयं  को कभी चिता में  …चन्दन लकड़ियों सा –
जलता हुआ  पाता हूँ  – 
और टूटे हुए  मिश्रित संयोग सा 
कोयले के टुकड़ों  की तरह 
यहाँ -वहां स्वयं बिखर जाता   हूँ  
लेकिन तुम्हारे प्यार की आंच से तप्त लावे की तरह 
बहता हुआ  मुझ स्वप्न  को
पुन: साकार होने में  
अपने बिखराव को समेटने में क्या बरसो लग जायेंगे ……
टहनियों पर उगे 
हरे रंग या पौधे मे खिले गुलाबी रंग 
या देह मे उभर आये -गेन्हुवा रंग 
सबरंग 
पता नही तुमसे कब मिलकर 
फिर  -थिरकेंगे मेरे अंग -अंग 
किशोर कुमार खोरेन्द्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

One thought on “लेकिन तुम्हें याद करते ही –

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी .

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