औरत मेरे जीवन में ….
हर रूप में
तू मेरा प्यार बन के आयी
मेरे जीवन का आधार बन के आयी
सबसे पहले
तू माँ बन के आयी
तू मेरा पहला प्यार बन के आयी
सौभाग्यशाली होता है जो
इन्सान का जन्म लेता है
तू इस सौभाग्य का
अवतार बन के आयी
फिर तू मेरी बहन बन के आयी
मैंने तुझसे गुड्डे गुड्डियों से
खेलना सीखा लड़ना सीखा
राखी का प्यार निभाना सीखा
याद है तू मेरी दोस्त बन के आयी
पहली कक्षा में
हाथ पकड़ एक दूजे का
स्कूल इकट्ठे जाते थे
लंच एक दुसरे का खाते थे
मैंने तुझ से रिश्तों के बाहर
दोस्त बनाना सीखा
और दोस्तों का प्यार पाना सीखा
फिर तुम मेरी प्रेमिका बन कर आयी
तो एक हसीना पे जान गवाना सीखा
एहसासों के पंख लगा
आसमानों में खो जाना सीखा
और जब तू पत्नी के रूप में आयी
तो मैंने उत्तर्दायित्व निभाना सीखा
मेहनत से कमाना सीखा
आटा दाल साग सब्जी लाना सीखा
जब तू बेटी बन के आयी
तो एक नये जीवन का आभास सीखा
तेरे हर सुख दुःख को अपना बनाना सीखा
माँ बाप ने हमें कैसे पाला था
उसका अहसास सीखा
शुक्र है तूने औरत बनाई है
वर्ना ये जीवन का आभास न होता
हर मोड़ पे इस जीवन के
मैं बहुत उदास होता …….
……..इंतज़ार
बहुत सुन्दर कविता और उसके भाव !
विजय जी आभार ….
गुरमेल जी आप का आभार …..मंगलकामनाएँ
इंतज़ार जी , कविता बहुत अच्छी लगी , आप ने औरत के सभी रूप दिखा दिए.