कविता

नये हुए अनुबंध – नवगीत

नये छंद से, नये बंद से
नये हुए अनुबंध

नयी सुबह की नयी किरण में
नए सपन की प्यास
नव गीतों के रस में भीगी
मन की पूरी आस

लगे चिटकने मन की देहरी
शब्दों के कटिबंध

नयी हवाएँ, नयी दिशाएँ
बरसे नेही, बादल
छोटी छोटी खुशियाँ भी हैं
इन नैनों का काजल

गमक रही है साँस साँस भी
हो कर के निर्बंध

नये वर्ष के नव पन्नों में
नये तराने होंगे
शेष रह गये सपन सलोने
पुनः सजाने होंगे

नयी ताजगी आयी लेकर
नये साल की गंध

–शशि पुरवार

4 thoughts on “नये हुए अनुबंध – नवगीत

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर नव गीत !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी लगी .

  • इंतज़ार, सिडनी

    मनभावन रचना …..नये साल की नयी ताजगी बिखेरती हुई

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