कविता

साथ ……..

कभी ये परेशां है

कभी वो परेशां है

मजबूरिओं की बेड़ियों  में

जकड़े हैं दोनों ऐसे

कोई कदम चल नहीं सकता

तो कोई कदम रोक नहीं सकता

वक़्त की किताबों में

कुछ लिखा नहीं मिलता

इन हालात का

कोई किस्सा नहीं मिलता

इतिहास तो होगा

हर एक जज्बे का

मगर कोई लिख नहीं सकता

तो कोई पढ़ नहीं सकता

सुलह की सीढियों से

कोई छत पे चढ़ नहीं सकता

तो कोई छत से उतर नहीं सकता

जो चाहिए वोह मिल नहीं सकता

और कोई दे नहीं सकता

फिर ये साथ कैसा है

कोई छोड़ नहीं सकता

तो कोई निभा नहीं सकता…

कोई जी नहीं सकता

तो कोई जहर पी नहीं सकता…

……..इंतज़ार

 

6 thoughts on “साथ ……..

    • इंतज़ार, सिडनी

      किशोर जी आभार ….

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

    • इंतज़ार, सिडनी

      विजय जी धन्यवाद ….

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत कमाल का लिखते हैं .

    • इंतज़ार, सिडनी

      गुरमेल जी प्रसंशा के लिये धन्यवाद

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