गीतिका/ग़ज़ल

नहीं चाहिये ऐसा जीवन

नहीं चाहिये ऐसा जीवन, जिस में नहीं है प्यार भरा।

नफरत करता फिरता हो,  मन में रहा हो‌ खार‌ भरा।

चाह नहीं हो प्रेम भाव की,  उखड़ा उखड़ा रहता हो,

गुमान लिए धन दौलत का, मन में हो अहंकार भरा।

काम किसी के आया नहीं, स्वार्थी लोभी मन से रहा,

पड़ी जरूरत तो कन्नी काटे, भीतर मन विकार भरा।

दीनदुखी की सेवा न जानी, परहित की न सोच रही,

छलिया बन सब को ठगता,  ठूस ठूस मक्कार भरा।

काम क्रोध मद लोभ में डूबा,द्वेष भाव मन में रखता,

नहीं चाहिये ऐसा जीवन, नहीं जिस में संस्कार भरा।

मां बहन बेटी ने समझे,नारी का नित शोषण करता,

कलुषित करता है मर्यादा,सोच में है व्यभिचार भरा।

नहीं चाहिये ऐसा जीवन, जो ईश वंदना करता नहीं,

मां बाप की सेवा नहीं की, नहीं मन में सत्कार भरा।

नहीं चाहिये ऐसा जीवन, जो पेट भरे‌ है खुद अपना,

दान दिया नहीं पुन्य कमाया, रोम रोम दुराचार भरा।

धर्म कर्म का सार न समझे , पशुवत जीवन जीता है,

नहीं चाहिये ‘शिव’ ऐसा जीवन, रोम रोम है रार भरा।

— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. Sanyalshivraj@gmail.com M.no. 9418063995

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