भजन करे सिमरन करे, फिरा न मन का फेर। ध्यान सदा धन में रहे, लिया मोह ने घेर। साधु संत का रूप धर, मन भीतर शैतान। छल कपटी ढोंगी बना, ढूंढ रहा भगवान। काम क्रोध मद लोभ में, सदा सुरा का पान। नारी नयनों में बसे, करे ईश का ध्यान। माया ठगनी […]
Author: शिव सन्याल
चाहत है मेरी
चाहत मेरा खून का कतरा,देश की सरहद पर बहाऊँ। देश हित कुर्बान हो कर के, लौट तिरंगे में इठलाऊँ। चाहत है इन बाहों का बल,अबला का संबल बन जाऊँ। है उठता मन प्रेम उमड़ कर, स्नेह अनाथ का बन पाऊँ। चाहत धन मन तन सब,दीन दुखी सेवा में लगाऊँ। अपाहिज लाचार जो फिरते,जा मैं उनका […]
प्रीत लगाना सीखो
प्यार की बातें सब करते, प्रीत लगाना भी तो सीखो। बिना प्रेम बुझती मन बाती, प्रेम ज्योत जगाना सीखो। दो नयनों के दीप जले हैं, फिर है मन अंधियारा कैसा। प्रेम के दो बोल तो बोलो, इस से बड़ा नजारा कैसा। सुख दुख बांटो प्रेमी बनके, साथ सदा निभाना सीखो। बिना प्रेम बुझती मन बाती, […]
दान
अपने कर्म से अर्जित किया, थोड़ा कीजिए दान। प्रेम घट भीतर भर लीजिए ,हो खुशियों का भान। जितनी जरूरत है आप को, उतना ही रखो पास, जरूरतमंद की मदद करो, भलाई इस को मान। चिड़ी चोंच भर जल ले गई, सरिता न घटियो नीर। बहते नदी का पानी कभी, करता नहीं अभिमान। है रोटी मिले […]
निराश मत होना जीवन में
निराश मत होना जीवन में, हो दिल क्यों छोटा जाता है। बहता चल सरिता बन के, राह सुगम बनता जाता है। निराश मत होना जीवन में बनते चतुर चालाक यहाँ , तेरी बात को टोका जाता है। सत्य पथ पर बन कर कांटे, तेरी राह को रोका जाता है। निराश मत होना जीवन में। मन […]
तड़प मेरे गांव की
गांव की याद रह रह के, हाय जिया रूलाती है। तड़प सीनें में उठती है, गांव की याद आती है। शहर की हवा जरीली सभी की सांस घुटती है, कंकरीट के महलों में, न सौंधी खुशबू आती है। लहलहाते खेत गांव के, कुंए से पानी भर लाना, किये घुंघट नई नारी, मुडेर की रौनक बढ़ाती […]
चुनाव और नेता
इस चुनाव के दौर में, हवा चली विपरीत। वोटर नब्ज देख रहा, किस की कैसी नीत। खूब नचाया नाच है, जनता करे हिसाब। हवा चली विपरीत है, किस का चलता दाब। हथकंडे अपना रहे, कैसे होगी जीत। होश सभी के उड़ रहे, हवा चली विपरीत। हवा चली विपरीत है, ढूंढ रहे हैं […]
प्रीत की रीत निभाना सीखो
प्रेम की बातें सब करते ,प्रीत की रीत निभाना सीखो। बिन प्रेम बुझे मन बाती, प्रेम का दीप जलाना सीखो। दो नयनों के दीप जले हैं,फिर भी मन अँधियारा कैसा। प्रेम के दो बोल तो बोलो, इस से बड़ा नज़ारा कैसा। आपनें हो मीत यहाँ,मिल जुल साथ निभाना सीखो। बिन प्रेम बुझे मन बाती, प्रेम […]
बाल कविता – किताबों के शहर में
आओ बच्चो तुम्हें घुमाएं किताबों के शहर में। शब्द फूल बन के महके खिले हुए गुलजार में। ज्ञानवर्धक बातें मिलेंगी कागज़ पर लिख लेना। शिक्षा देती मित्र बन के इन से तुम सीख लेना। किताबों में छीपा हुआ है ज्ञान का भंडार भरा। मन को बांध रखती हैं बच्चो इन में प्यार भरा। देख चौखट […]
कविता – रंग लहू का लाल देखा
धर्मों की आड़ में इंसान, चलता कुचाली चाल देखा। चहुँ और फैला था ज़मी पे, रंग लहू का लाल देखा। लड़ लड़ के मर रहे थे, अपने अपने महजब के राही, तड़फ रही मां के सीने का, बेमौत मरता लाल देखा। सींच कर पाला था जिस को, बड़े शौक से माली नें, नोच डाला काफिरों […]