दोहे—टुकड़े टुकड़े हो गये
टुकड़े टुकड़े हो गये, बिखर गया परिवार।
पहले जैसा अब कहां, रहा दिलों में प्यार।
टुकड़े टुकड़े हो गये, अब रिश्तों की डोर।
रहा नहीं विश्वास है, सबके मन में चोर।
टुकड़े टुकड़े हो गये, जो होती छत एक।
अपने अपने हो गये, रही न कोई टेक।
टुकड़े टुकड़े हो गये, मां के सपने आज।
भाई प्यासे खून के, भूल गये सब लाज।
टुकड़े टुकड़े हो गये, दिल के सब अरमान।
बेमौसम बरसात से , हुआ बहुत नुकसान।
करने पीले हाथ हैं, बेटी हुई जवान।
कर्जा सिर पर है चढ़ा, रोता दुखी किसान।
टुकड़े टुकड़े हो गये, बढ़ी बीच तकरार।
बंट गये आंगन तभी, खड़ी हुई दीवार।
— शिव सन्याल