सामाजिक

अच्छे लोग अक्सर खुद के लिये बुरे सिद्ध होते हैं

सीधे -साधे संत प्रवृत्ति के करुणावान लोग  दूसरों के लिये अच्छा बनने के फलस्वरूप खुद के लिये बुरे बन जाते हैं!उनका खुद का जीवन दुखों से भर जाता है! वो खुद का जीवन जी ही नहीं पाते हैं!उनके खुद के जीवन में प्रत्येक कदम पर कांटें बिछ जाते हैं! दूसरों की वाहवाही खुद की बर्बादी का प्रमाण है! लेकिन अच्छे लोग करुणा के सिवाय किसी को कुछ दे भी तो नहीं सकते! लेकिन यह क्रूर दुनिया इसके बावजूद भी अच्छे लोगों को पलभर भी सुख चैन से नहीं जीने देती है!मानवता का यह इतिहास है! आहार, निद्रा, भय और मैथुन हरेक प्राणी में होते हैं! धर्म ही मनुष्य को पशु-पक्षियों  से अलग करता है! लगता है कि आज के मनुष्य में धर्म बिलकुल सोया हुआ है! 200-300 वर्ष के चमत्कारी एकतरफा भौतिक विकास ने मनुष्य को पूरी तरह से उपयोगितावादी बना दिया है! आज का उच्च शिक्षित भौतिकवादी मनुष्य हरेक व्यक्ति, वस्तु, परिस्थिति और अवसर को उपयोगिता के दृष्टिकोण से देखता है! यहाँ तक कि इन्होंने धर्म, नैतिकता और योगाभ्यास को भी निरा भौतिकवादी रुप दे दिया है!
ओशो कहते हैं कि संसार झूठ का व्यापार है! यहाँ झूठे सफल और भोलेभाले लोग असफल होते हैं! जिंदगी की दौड में सच्चे और भोलेभाले लोगों की गति फिसड्डी है! सच्चे और भोलेभाले लोगों की कोई पूछ नहीं है!और ऊपर से कथाकारों, संतों, मुनियों, स्वामियों, संन्यासियों, मौलवियों, पादरियों के सच्चा इंसान बनने के उपदेशों की मूसलाधार बारिश! सच्चे और भोलेभाले लोग इनके दुष्चक्र में फंसकर अपना सब कुछ गंवा देते हैं! न झूठ के पैर होते तथा न हो झूठों के पैर होते हैं! इसीलिये ऐसे व्यक्तियों की गति हवाई होते हैं! झूठ के संसार में ऐसे व्यक्तियों की गति राकेट की तरह होते हैं! झूठ और झूठों से भरे इस संसार की वास्तविकताओं को समझ लो! लेकिन ध्यान रहे कि बीच में तथाकथित सारे सुधारक टाईप के महापुरुष झूठ और झूठे लोगों के रक्षक बनकर खड़े हैं! ये लोग कभी भी वास्तविकता से परिचित नहीं होने देंगे! कुछ लोग राजनीति की ठेकेदारी कर रहे हैं तो कुछ लोग धर्म की ठेकेदारी कर रहे हैं! कुछ लोग नैतिकता के ठेकेदार बने बैठे हैं तो कुछ लोग योगाभ्यास के ठेकेदार बने बैठे हैं! सत्यवादी भोलेभाले लोग इनकी चक्की के पाटों के बीच पिस रहे हैं!
जो भी इस वास्तविकता को समझाने की कोशिश करता है, उसे चार्वाक, भौतिकवादी, जडवादी, नास्तिक, अधर्मी, पापी कहकर गालियाँ दी जाती हैं! यह बात जितनी सच 5000 वर्ष पहले थी, उतनी ही सच समकालीन वैज्ञानिक कहे जाने वाले आधुनिक युग में भी है! हुआ होगा बाहरी विकास, लेकिन भीतरी विकास में मनुष्य जगत् आज भी हजारों वर्ष पहले खड़ा हुआ है! स्वार्थ निकालने के सिवाय किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है! धरती के प्रत्येक कोने पर उच्छृंखल भोगवादी जीवनशैली व्याप्त है! सनातन भारतीय अनुशासित संयमित जीवनशैली तो अपवादस्वरूप ही देखने को मिल रही है! हांलाकि लाख- लाख करोडी हजारों धर्मगुरु, योगाचार्य और सुधारक सनातन भारतीय जीवनशैली की आड में अपनी दुकानें चला रहे हैं! लेकिन परिणाम कहीं भी दिखलाई नहीं पड रहा है! वजह केवल एक ही है! वह वजह है इन तथाकथित धर्मगुरुओं की सात्विकता से रहित तामसिक भोगवादी- पदवादी- अहंवादी जीवनशैली!इनको सनातन भारतीय जीवन -मूल्यों के प्रचार व प्रसार से कोई लेना देना नहीं है!बस किसी तरह से इनकी दुकानें चलती रहें! धर्म, अध्यात्म, योगाभ्यास, नैतिक -मूल्यों आदि को माध्यम बनाकर अरबों- खरबों रुपये का मालिक बनकर धनपतियों वाला जीवन जीना ही इनका लक्ष्य है!पद, प्रतिष्ठा, प्रसिद्धि,धन, दौलत, अहंकार, जमीन, जायदाद आदि अर्जित करना ही इनके जीवन का मुख्य उद्देश्य है! भीतर कुछ तथा बाहर कुछ अन्य ही! इसीलिये जनसामान्य भारतीय इनसे कुछ सीख नहीं ले रहा है! बडे और पढ़े- लिखे कहे जाने वाले भारतीयों को धर्म,नैतिकता, योगाभ्यास, जीवन -मूल्यों आदि की जरूरत है ही नहीं!इनको तो अनैतिक, गलत,अनुचित, अनुशासनहीन, धर्महीन और मूल्यरहित होने की छूट मिली हुई है! जनसामान्य धर्म करे तो भी पापी कहलाता है लेकिन बडे लोगों का पाप करना भी धर्म की श्रेणी में गिना जाता है! शासन, प्रशासन और कानून भी इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता है! भौतिक सुविधाओं का वास्तविक भोग तो यही लोग कर रहे हैं!
इसी भेदभावपूर्ण दुष्ट व्यवस्था से हताश होकर भारतीय ग्रामीण लोग जहाँ प्रतिदिन नशे पर 143 रुपये खर्च करते हैं तो शिक्षा पर 125 रुपये खर्च करते हैं! यह हमारे विकास की एक झलक है! विश्वगुरु और विश्व महाशक्ति बनने का दावा करने वाले हमारे देश की साढ़े इक्यासी करोड़ आबादी को मुफ्त में भोजन देना पड रहा है! यानि भारत के साढ़े इक्यासी करोड़ लोगों के पास प्रतिदिन खाने के लिये अनाज का भी जुगाड़ नहीं है! विडम्बना है कि आज तक भारत का कोई भी चुनाव किसान,खेतीबाड़ी, मजदूर, बेरोजगारी, शिक्षा,शोध, कानून व्यवस्था, बिजली, पेयजल,आवास, चिकित्सा, सुरक्षा को मुद्दे बनाकर नहीं लडा गया है! विभिन्न सरकारें विकास के मूलभूत कार्य तो करवाती नहीं हैं तथा आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई होती हैं! केवल इसीलिये लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करते हुये नकली, झूठे, बेसिरपैर के मुद्दों के बल पर चुनाव जीते जाते रहे हैं!जनसामान्य को सम्मोहित करना कोई असंभव कार्य नहीं है! लगातार जनसामान्य के चेतन मन को बेहोश करके अवचेतन मन में जानबूझकर जबरदस्ती से गलत जानकारियां ठूंसी जा रही हैं! राष्ट्रीय मीडिया की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है! धनाड्य लोग रुपये खर्च करते हैं! धर्मगुरु लोग नेताओं के लिये थोक में वोट का जुगाड़ करते हैं! इस प्रकार के भ्रष्ट सिस्टम से चुने गये नेताओं से धनाड्य और धर्मगुरु लोग पांच वर्ष तक बहुतायत से गैरकानूनी काम करवाते हैं! इन तीनों के दुष्ट ठगबंधन में जनसामान्य किसान, मजदूर, मेहनतकश तथा मध्यमवर्गीय लोग पिसते रहते हैं! ऐसी व्यवस्था को लोकतंत्र कहें या लट्ठतंत्र कहें या लूटतंत्र कहें या कुछ अन्य कहें?
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार अच्छा, भला, मेहनती, देशभक्त और ईमानदार कहे जाने वाले किसान की सतरह राज्यों में प्रतिवर्ष आमदनी 20000 रुपये है यानि 1700 रुपये मासिक!इतने कम रुपये में गरीब के बच्चों की पढाई,चिकित्सा, भोजन, बिजली, पानी, कपडा, आवास, शादी ब्याह आदि किस तरह से हो सकेंगे? हरियाणा की कृषि समस्याओं पर आधारित कृषि विश्वविद्यालय की पत्रिका के अनुसार पौने तीन एकड के किसान को खेतीबाड़ी और पशुपालन से प्रतिवर्ष सवा लाख के लगभग घाटा हो रहा है! लेकिन सत्तासीन लोग किसान की आय को दौगुना कर दिये जाने का ढिंढोरा पीट रहे हैं!
इस देश की शिक्षा- व्यवस्था में अच्छे, भले,प्रतिभावान और मेहनती शिक्षक को कुछ भी नहीं करने दिया जा रहा है!इस देश की राजनीति में जमीन से जुड़े हुये देशभक्त, ईमानदार, कर्मठ, गरीब और निर्दोष लोगों को नहीं आने दिया जा रहा है! इस देश के सनातन धर्म और संस्कृति में मौजूद विभिन्न संस्थाओं में वास्तविक धार्मिक, संस्कृति प्रेमी और शुद्धात्मा सज्जन लोगों को निकट भी नहीं आने दिया जा रहा है! हरेक क्षेत्र में अपराधी,ठग ,भ्रष्टाचारी, लूटेरे, धूर्त, झूठे, वायदाखिलाफ और चोर- उचक्कों की भरमार है! अच्छे कहे जाने वाले लोग छिपते घूम रहे हैं जबकि अपराधी प्रवृत्ति के भ्रष्टाचारी लोग सरेआम अट्टहास करते हुये विचरण कर रहे हैं! अच्छे लोग डरे हुये हैं तो अपराधी लोग निर्भय हैं!अच्छे लोगों का सुख -चैन गायब है जबकि बुरे लोग नि:संकोच जीवन जी रहे हैं! एक दिन तो अच्छों को भी मरना है तथा बुरों को भी मरना है! लेकिन जब तक जीते हैं तब तक अच्छे लोग दुखी, प्रताड़ित,भयग्रस्त, अभावग्रस्त जीवन जीते हुये देखे जा सकते हैं!शास्त्रीय मर्यादाएं और संविधान सम्मत कानून आदि केवल अच्छे, भले, सज्जन, गरीब, गरीब, असहाय लोगों के पालन करने के लिये हैं!
     हमारे नेता इतने देशभक्त और राष्ट्रवादी हैं कि वोट तो हिंदी मांगते हैं लेकिन बजट गुलामी की भाषा अंग्रेजी में पढते हैं! अपराध करने वाले भी भारत भाषाभाषी हैं तथा जिन पर अपराध होते हैं वो भी भारत भाषाभाषी हैं लेकिन सजा अंग्रेजी भाषा में मिलती है! अधिकांश न्यायालयों में वकील और न्यायाधीश अंग्रेजी भाषा में गिटपिट करते रहते हैं! न तो वादी को कुछ समझ में आता है तथा न ही प्रतिवादी को कुछ समझ में आता है! इसके बावजूद निर्णय आ जाते हैं! इस तरह की मूढता विश्वगुरु भारत में ही संभव है!यह पाखंड और ढोंग की परिकाष्ठा है! ऐसे विषम और हास्यास्पद हालात में अच्छे और भले लोगों को कौन पूछता है? किसी तरह लुक- छिपकर जीवन जीने की कोशिश रहती है! कहीं आडे चढ गये तो व्यवस्था सारे अच्छेपन, भलेपन, ईमानदारी, मेहनत, निष्ठा,सज्जनता आदि को पिछवाड़े से बाहर निकाल देगी!

— आचार्य शीलक राम

आचार्य शीलक राम

दर्शन -विभाग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र-136119 मो. 8222913065 -- Acharya (Dr.) Shilak Ram Acharya Academy Chuliana (Rohaj) Rohtak (Haryana) Mobile : 9992885894 9813013065 8901013065 www.pramanaresearchjournal.com www.chintanresearchjournal.com acharyashilakram.blogspot.in https://www.facebook.com/acharya.shilakram https://www.jagaranjunction.com.shilakram ORCID-https://orcid.org/0000-0001-6273-2221