ग़ज़ल
खून अपना देश हित जाऊॅं बहाने के लिए।
है मिली यह देह सरहद पर मिटाने के लिए।
कौम के है हम सिपाही है वतन प्यारा हमें,
हौसला है धूल दुश्मन को चटाने के लिए।
खून मेरा खौलता गद्दार जो हैं देश के ,
काम करते कौम का सिर झुकाने के लिए।
दूध मां का है पिया हूं मैं सहारा मात का,
हूं जवां दुश्मन भुजाओं से गिराने के लिए।।
फोड़ दे हम आंख उस की देखता जो घूर के,
मर मिटेंगे लाज अपनी हम बचाने के लिए।
जान से भारत वतन मेरा बहुत प्यारा मुझे,
जन्म फिर से ही मिले मुझ को लुटाने के लिए।।
फोड़ दूं मैं आंख मैली आंख से जो देखता,
हूं सदा तैयार अपना सिर कटाने के लिए।
चूम ली थी फांसियां, वो सूरमें थे हिंद के
हो गये कुर्बान भारत को बनाने के लिए।
दौर है खुशियों भरा की आज हम आजाद है,
हक मिला हर एक को जी घर बसाने के लिए।
— शिव सन्याल