कविता

मैं अकेला

अकेला हूँ

 पर अकेला नहीं 

मेरे साथ है 

तारो भरी रात 

चाँद की चाँदनी 

मुहँ पर आई झुर्रियां 

माथे पर पड़ी सकीन

 एक सुनसान रात में 

जब बिस्तर पर होता हूँ।

 घड़ी की सुईयों की आवाज

 भयभीत कर देती है 

मुझे झाड़ि‌यों की झुण्ड की छाँव 

आवारा पशुओं की आवारगी

 ये भी कभी-कभी डरा देती है। 

रात में कुत्तो की आवाज़ 

उल्लू की आवाज़ 

और भी कई बार बिस्तर से उठा देती है। 

बहती नदी की धारा 

तालाब का सुनसान 

 मुझे अन्दर से कचोटते हैं। 

बार-बार मरने की कहती है। 

सड़क पर गुजरने वाले वाहनों की आवाज़

 लोहपथ गामनी की रातों भर आवाज़ 

पटरी भी सुनसान 

मरने को कहती है। 

मैं अकेला हूँ मेरे साथ है। 

उन सब की यादें

जो मज़दूर और मजबूर हैं 

उनको चौराहो, गलियों

में घसीट-घसीट कर मार दिए गए।

वो खास जो सियासत करते हैं 

वो आम जो उनकी सेवा करते हैं 

उन सबका यह काम यह आम काम है।

 मैं अकेला हूँ 

पर याद है 

मुझे भीड़ में मरने वाले व मारने वाले 

लोग सीमा पर मरने वाले जवान

 दिल्ली में मरने वाले किसान 

मर गई है दोनों की शान 

मैं आज अकेला हूँ 

तुम करो जो करो।

 मुझे अकेला तुमने किया 

मेरे साथ है चाँदनी रात का साया 

कुछ बिती यादें।

 कुछ सुनहरे पल

 जो बित गए।

 — मनजीत सिंह

मनजीत सिंह

सहायक प्राध्यापक उर्दू कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र फोन नं 9671504409