कविता

बेटियाँ

बेटियाँ होती है कितनी प्यारी

सबकी आखो की राजदुलारी

फिर भी लोग क्यों समझते है बोझ

बेटे से जादा काम आती है बेटिया

हर समय माँ, बेटी, बहन बनकर

सबको प्यार देती है बेटिया

क्यों नहीं समझते लोग इनका मोल

हर सुख दुःख में ढाल बन   कर खड़ी है बेटिया

फिर क्यों इन्हें मार देते है कोख में

बेटी न रही तो क्या होगा इस समाज का

बेटी तो घर की रौनक है

ये कोई क्यों नहीं जानता?

बेटी को  घर  की लक्ष्मी  बनाओ

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384

4 thoughts on “बेटियाँ

  • गुंजन अग्रवाल

    bahut sundar srijan

    बेटियाँ होती
    है गर
    देवी स्वरूप
    फिर क्यों
    निगल जाता
    दहेज़ कुरूप

    gunjan

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता, गरिमा बेटी !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    गलत रिवाज , गलत सोच और दान दहेज़ की लानत बेटिओं को उनका सही स्थान देने नहीं देती .

  • Man Mohan Kumar Arya

    प्रशंसनीय कविता। बेटियों के प्रति अत्याचार का कारण वेदो का अप्रचार एवं समाज का अंधविश्वासों वा स्वार्थों में फंसे होना। गर्भ में कन्या शिशु की हत्या या बेडियों से भेदभाव रखना बुरा वा महापाप है। कविता के इस शीर्षक के चयन के लिए बधाई।

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