बेटियाँ
बेटियाँ होती है कितनी प्यारी
सबकी आखो की राजदुलारी
फिर भी लोग क्यों समझते है बोझ
बेटे से जादा काम आती है बेटिया
हर समय माँ, बेटी, बहन बनकर
सबको प्यार देती है बेटिया
क्यों नहीं समझते लोग इनका मोल
हर सुख दुःख में ढाल बन कर खड़ी है बेटिया
फिर क्यों इन्हें मार देते है कोख में
बेटी न रही तो क्या होगा इस समाज का
बेटी तो घर की रौनक है
ये कोई क्यों नहीं जानता?
बेटी को घर की लक्ष्मी बनाओ
bahut sundar srijan
बेटियाँ होती
है गर
देवी स्वरूप
फिर क्यों
निगल जाता
दहेज़ कुरूप
gunjan
अच्छी कविता, गरिमा बेटी !
गलत रिवाज , गलत सोच और दान दहेज़ की लानत बेटिओं को उनका सही स्थान देने नहीं देती .
प्रशंसनीय कविता। बेटियों के प्रति अत्याचार का कारण वेदो का अप्रचार एवं समाज का अंधविश्वासों वा स्वार्थों में फंसे होना। गर्भ में कन्या शिशु की हत्या या बेडियों से भेदभाव रखना बुरा वा महापाप है। कविता के इस शीर्षक के चयन के लिए बधाई।