कविता

मां, तुम कितनी अच्छी हो ! -4

आवारा कुत्तों या स्कूल में बच भी गई,

तो क्या गली के आवारा शोहदों से

मुझे, पापा बचा पाएंगे,

वह भी तब, जब देश के महाबली नेता सहजता से कहेंगे,

कि बलात्कार को कोई रोक नहीं सकता,

कि लड़कों से अक्सर गलती हो जाती है,

या फिर बलात्कार तो स्वाभाविक है,

मानवीय स्वभाव का हिस्सा है,

पूरे देश का यह एक अतिसामान्य किस्सा है,

सत्ता के मद में अंधे,

गुंडों के बलबूते चलते हैं, जिनके धन्धें,

बोलने से पहले सोचते नहीं, कि एक दिन,

जब चुक जाएगी उनकी शक्ति,

इन शोहदों की औलादें नहीं करेंगे इनकी भक्ति,

तब, नेताओं की नाती-पोतियों की भी आएगी बारी,

सरेराह उनकी भी उतारी जाएगी साड़ी,

पर मां, वे भी बेचारी,

होंगी तो कन्या ही, दूसरी लड़कियों की तरह,

वे भी होंगी, गैंगरेप की शिकार,

पर, मां इससे क्या फायदा होगा,

चाहे नेता की हो, या किसी गरीब की,

सवर्ण की हो, या दलित की,

लड़की तो आखिर लड़की ही है,

तुम तो मुझे, पापा और पूरे खानदान को,

इस जलालत से बचा रही हो,

कोख में मारने के,

सही फैसले से आखिर क्यों पछता रही हो,

मां, तुम कितनी अच्छी हो !

2 thoughts on “मां, तुम कितनी अच्छी हो ! -4

  • गुंजन अग्रवाल

    marmsparshi

  • विजय कुमार सिंघल

    कन्या भ्रूण हत्या पर एक मार्मिक कविता !

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