लघुकथा

रामी

रामी, मेरी बरसों पुरानी काम वाली बाई थी | वो रोज काम ख़तम कर के थोड़ी देर मेरे पास बैठती और अपने मन की बाते मुझसे करती थी| इसी दौरान चाय का दौर भी चलता था | चाय पीते- पीते ही वो बाते शेयर करती थी | आज जब वो काम निपटा कर आई, तो मैंने कहा”रामी तुमने अपने बारे मे वो सब तो बताया ही नहीं,जिसके कारण तुम्हे ऐसा जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ा| दरअसल रामी मेरे आलावा और भी कई घरो मे बर्तन चौका करके अपना और अपने तीन बच्चों का पालन पोषण करती थी |

ये तो जाहिर है कि पिता से ज्यादा माता ही अपने बच्चो से प्यार करती है क्योंकि माँ ९ महिने तक बच्चो को अपनी कोख मे ही अपने रक्त से पालन पोषण करती है | तभी चाय आगयी चाय का कप उठाते हुए वो बोली कि ‘जब मेरी शादी हुई तब मै शादी का अर्थ ही नहीं जानती थी,खेलने की उम्र मे ही माँ -बापू ने अपनी गोद मे बिठा कर मेरे साथ खुद भी मंडप मे बैठ कर फेरे संपन करवाये, मे तो एक खेल ही समझ रही थी | और चौदह साल की होते -होते बापू ने गौना कर के ससुराल भेज दिया | तब तक रीना ,सीता,नीलू और सीमा भी आ गयी थी रामी उनके घर भी काम करती थी | सब के लिए चाय आ गयी तभी रामी ने कहा ’जब गौना होने के बाद मै ससुराल आई तो एक दो दिन बाद ही माहौल अपने प्रतिकूल पाया | सास नन्द देवर और ससुरजी मुझे ऐसे देखते थे जैसे मे बलात, उनके घर मे घुस आई हूँ | तभी सीमा ने कहा- ” ऐसा क्या हुआ था”

“पता नहीं , ऐसे ही तीन साल गुजर गये हालत बद से बदतर होते गये मेरे पति जिनसे मुझे जयादा तो नहीं पर थोड़ी उम्मीद थी| पर वो भी जल्दी ही टूट गयी |एक बार सास के कहने से पति ने मुझे बहुत मारा |मेरे दो छोटे बच्चे थे जो मुझे रोते और पिटते देख कर जोर जोर से रोने लगे पर क्या कहू आपको उनमे से किसी को भी उन मासूम बच्चो पर दया नहीं आई थी |तभी रीना बोली ”घर मे माँ बापू को बताती तो सही कि तुम्हे ये लोग कितना प्रताड़ित करते है | तो वो बोली ”किस्मत मे यही सब लिखा है,ये सोच कर कभी किसी से अपने तखलीफ़ का जिक्र ही नहीं किया | पर एक बार तो उन्होंने हद ही करदी ”मुझे उस दिन मेरे पति ने स्वयं खाना लाकर दिया और कहा कि” बच्चो को भी खिलाओ तुम भी खाओ, न जाने मुझे आज तुम सब पर क्यों इतना प्यार आरहा है | मै कुछ समझ पाती उससे पहले ही वो अपने हाथो से बच्चो को खिलाने लगे और मुझे भी, और उनके लाये खाने को हमने खा लिया |

करीब दो घंटे बाद हमने अपने आप को अस्पताल मे पाया और एक दूर का रिश्तेदार हमारे पास खड़ा था| ”ये कहाँ है हम ” मैंने  पूछा तो वो बोला”भाभी आप अस्पताल मे है आप सब को खाने मे जहर दिया गया था ये तो आपकी किस्मत थी कि उस वक्त मैं आ गया और अस्पताल समय पर लेकर आया नहीं तो आज आप लोग जिन्दा नहीं होते,”मै अवाक् उसे देखती रह गयी और उसी वक्त मन ही मन फैसला किया कि अब इस नरक मे से अपने को निकलना है ”

मैंने कहा ”कैसे निकाला अपने आप को उनके चुंगल से ” रामी ने कहा” एक दिन सास ससुर खेत गये हुए थे देवर नन्द और पति पास के गाँव मे मेला देखने गये हुए थे मौका अच्छा जान कर बच्चो को लेकर मै पास के ही शहर मे यानि यहाँ आ गयी |

अब रात को जब सब घर आये तो हमें वहा ना पाकर वो सब आग बबूला होगये | समय बितता गया मैडम और यहाँ आकर मैंने आप सब के घरो मे काम कर के अपना और बच्चो का पेट पालने लगी | ईमानदारी और मेहनत से काम  कर के मैंने आज अपने लिए  सर छुपाने के लिये छत यानि छोटा सा घर भी बनवा लिया और आज मेरे बच्चे स्कूल भी जाते हैं. भगवान का दिया मेरे पास सब कुछ है |

तभी रीना ने कहा ”ससुराल वालों का क्या हांल हुआ ” रामी ने कहा जो एक निर्दोष को सताने पर होता है वही हाल उनका हुआ |’ उनका खेत बिक गया, वो पैसे पैसे के मोहताज हो गये कहते है ना जैसी करनी वैसी भरनी …..

शांति पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

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