कविता

दोहा- मुक्तक

सोने जैसा “रूप” है, चाँदी जैसा रंग।
चमक बिखेरे तू सदा, मिलकर तारों संग॥
मनोकामना है यही, चमके तू दिन-रात।
देखे तेरी चमक जो, रह जाए वो दंग॥

दिनेश”कुशभुवनपुरी”

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