बेटियाँ होती
है गर
देवी स्वरूप
फिर क्यों
निगल जाता
दहेज़ कुरूप
“““““`
छुईमुई सी धूप
उतरी धरा पर
इन्द्रधनुषी तूलिका संग
भर नव जीवन
अलसाई सी कलियाँ
हँसी खिलखिलाई ।
““““““““
है नादान
मोहब्बत तेरी
कभी हाँ
तो
कभी न
कभी
बेपनाह इश्क
की बरसात
तो कभी
तन्हाई के हालात ।
gunjan agarwal
shukriya vijay bhai …
बहुत अच्छी क्षणिकाएं !