पराया धन
कह कर सब ने
पराई सदा ही दिल
दुखाया मेरा ……
जब कहा सब ने
है पराया धन
फिर भी बेटी से बहन
का हर फ़र्ज़ निभाया मैने
यूँ बड़े होते होते भी समझ
न पाई क्यों हो कर भी अपनी
पराई ही कहलाई …….
ब्याह कर जब आई
यहाँ भी सब ने कहा सदा है
पराये घर से आई
फिर भी बीवी , बहू
हर रिश्ते का फ़र्ज़ निभाया
रखा सदा ही मान – सम्मान
हर रिश्ते का
फिर भी कभी
कोई अपना न हुआ
सब ने सदा ही किया पराया
है कैसी नियति हम बेटियों की
सदा पराई ही कहलाई
फिर भी हम ने हमेशा
प्यार ही बांटा सब को
प्यार से ही सजाया हर रिश्ता
ये और बात है की दिल फिर भी
समझ न पाया क्यों सदा ही
पराई कहलाई गयी …………….
मीनाक्षी सुकुमारन
तहे दिल से बेहद शुक्रिया विजय जी
बहुत मार्मिक कविता. बेटी को पराया धन कहना गलत है. उस पर माता पिता का भी उतना ही हक़ है, जितना ससुराल का.