बात यह है दरअसल
बात यह है दरअसल
तुम ही मेरी नज्म हो
तुम ही मेरी कविता हो
तुम ही हो मेरी ग़ज़ल
तुम्हें महसूस किये बिना
शब्दों को छन्द आबद्ध
किये जाने का मेरा
हर प्रयास
हो जाता है निष्फल
मुझे निहारते ही
तुम भी तो
लहरों सा जाती हो मचल
तुम्हारी छवि सा
गहरा हैं मरू तल
इसी वज़ह से
मेरे मन का सागर
नज़र आता है निर्मल
तुम्हारे शरर ए हुस्न से
मेरे इश्क़ का चराग़
उठा है जल
ढहने न देना
अब तुम
मेरे तसव्वुर का
यह वृहद महल
खिलने देना
रूह के सरोवर में
प्यार के अनगिनत कमल
किशोर कुमार खोरेन्द्र
वाह वाह !
shukriya vijay ji