वहाँ कोई नही था
वहाँ कोई नही था
न भाई,न बहन
न माता -पिता
न ही कोई एक मित्र
सब अकेले थे
और मुझे कहना था कुछ
फेंकी गयी जूठन में से
किसी भिखारी को
मैंने
पेट भर खाना खाते देख लिया था
एक औरत को
नये कपड़ें की तरह
खरीद कर
बाजार से जाते हुऐ
मैंने
एक आदमी को
देख लिया था
रूप या धन
को पाकर
ख़ुद को बड़ा
सबको छोटा
समझने वाली नजर
को पढ़ लिया था मैं
लोग नयी कार की तरह
दौड़ रहे थे
लिफ्ट की तरह चढ़ रहे थे
कांच के गिलास में
नशे की तरह भर रहे थे
मुझे भी एक रंगीन चश्मा
खरीद लेना था
अब -तक
क्या भुलाना
लगातार लापरवाह
होते जाना
यही जिन्दगी है
माँ,पिता ,भाई ,बहन ,मित्र
पति पत्नी ,गुरु
ये सब केवल
क्या सीढ़ियाँ है ?
क्या बुद्धिमान
वही व्यक्ति है
जो दूसरों को अपमानित
करना जानता है
-इन सारे प्रशनो के
उत्तर देने से बचने के लिए
लोग
जमीन खरीद रहे थे
नया घर बना रहे थे
या ख़ुद के गले मे
एक -मुखी
पंच-मुखी
रुद्राक्ष
के माले की तरह
लटक रहे थे
मै इस अंधेरे में
दीये की तरह
जल रहा था
बस्
एकांत
सा
चुपचाप
किशोर कुमार खोरेन्द्र