क्यूँ न करूँ पन्ने काले ..
कर लेने दो कुछ काले पन्ने
दिल-दिमाग को शांति मिलती है
नहीं चाह है मुझे वाह-वाही की
चाह है तो बस दिल के सुकून की
और वो मिल जाता है चंद अल्फाज से
तो भला तुम ही बताओ ना आखिर
क्यूँ न करूँ मैं पन्ने काले …..
किसी के लिए वक्त की बरबादी हो सकता है
पन्ने काले करना
पर मेरे लिए तो हरगिज नहीं है
मेरे लिए तो ये समय का सदुपयोग है
खुद के करीब रहने की एक कोशिश है
अपने भावों और अहसासों को जिंदा रखने की
ख्वाहिश है बतौर अल्फाजों के
तो बताओ ना तुम ही भला आखिर
क्यूँ न करूँ मैं पन्ने काले ……..
कभी दर्द कम होता है तो कभी
दुगनी हो जाती हैं खुशियाँ चंद अल्फाजों से
कभी क्रोध शाँत हो जाता है तो कभी
दिल का बोझ हल्का हो जाता है इन्ही चंद अलफाजों से
तो फिर तुम ही बताओ ना मुझे आखिर
क्यूँ ना करूँ मैं पन्ने काले …………
प्रवीन मलिक
तुलसी दास जी ने भी लिखा है- ‘कवित विवेक एक नहीं मोरे. सत्य कहों लिखि कागद कोरे.’
जी बिलकुल… हम सबको अधिकार है पन्ने काले करने का ….सुन्दर अभिव्यक्ती
बहुत खूब ! अपने मन की भावनाओं को प्रकट करने के लिए लेखन से अच्छा उपाय दूसरा नहीं है !