कतीब
तुम बिन –
अंधेरें में डूबी हुई सी
लगती हैं महफ़िल
तुम्हारे कदम रखते ही
जल उठते हैं कंदील
सुरूर सा छा जाता है
और –
मैं हो जाता हूँ गाफिल
मेरी तक़दीर
में यही है कतीब
तुमसे दूर होने की
जितनी करूँ कोशिश
उतना ही पहुंचाए
मुझे
तुम्हारे करीब
तुम्हारी निगाहों में है
जो इतनी क़शिश
बस तुम्हारा ही नूर
आता हैं नज़र
न रह जाता है तरीक
न रह जाती है मंजिल
मैं तुमसे
इतना हुआ हूँ मुतअस्सिर
तुम हुस्न का आकर्षण हो
और मैं हूँ इश्क का तहजीब
इसलिए हम दोनों हैं मुख्तलिफ़
किशोर कुमार खोरेन्द्र
{महफ़िल=सभा ,कंदील ,सुरूर=हल्का नशा ,गाफ़िल=बेहोश ,तकदीर=भाग्य ,कतीब=लिखा हुआ ,कशिश =आकर्षण ,
तरीक=रास्ता ,मुतअस्सिर=प्रभावित ,कशिश =आकर्षण ,नूर =आभा ,तहजीब =नियम ,सभ्यता ,
मुख्तलिफ़ =अलग }
बहुत सुन्दर …हुस्न का आकर्षण …इश्क का तहजीब
वाह वाह !