कविता

मां, तुम बहुत अच्छी हो ! – 8

मां, जाते जाते एक सलाह और देती हूं,

कि बेटे की आशा में किसी संत के पास मत जाना,

क्योंकि एक दिन तुम्हें,

पड़ेगा बहुत पछताना,

छप चुका है अखबारों में कई बार,

संतों ने अपनी भक्तिनों की इज्जत को,

किया है तारतार,

हर बार, बारबार,

मां, जाती हूं,

पर एक बार फिर कहना चाहती हूं,

मां, तुम कितनी अच्छी हो,

मां, तुम बहुत अच्छी हो,

 

मां, जाते जाते एक काम बता रही हूं,

ये मत समझना की मरते मरते भी,

आपको सता रही हूं,

मां, तुम भक्तवत्सल श्रीकृष्ण से,

प्रार्थना करना,

वे अन्तर्यामी हैं,

दीनों के स्वामी हैं,

वे तो करुणानिधि हैं,

मांगने से मत डरना,

मांगना कि

अबलाओं पर अपना बल आजमाने वाले,

वीर्यवान पुरुषों को,

केंचुए की तरह उभयलिंगी बना दो,

उन्हें खुद पर ही बल आजमाने दो,

न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी,

खत्म हो जाएगी पुरुषों की आसुरी,

मां, प्लीज ये प्रार्थना जरूर करना,

मां, तुम कितनी अच्छी हो,

मां, तुम बहुत अच्छी हो !

One thought on “मां, तुम बहुत अच्छी हो ! – 8

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता. कविता क्या एक आरोप पत्र है, कन्या भ्रूण हत्या करने वालों के विरुद्ध. धन्यवाद, डाक्टर साहब !

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