अधूरे ख्वाब
सारे अधूरे ख्वाब
सपनीले राजकुमार के
जो आएगा
एक दिन मेरी जिन्दगी मेँ
बंद कर दिया है
मैने उसे,
उसी बक्से मेँ,
जिसमेँ अम्मा ने संजोए थे
अपने ख्वाब . . .
जब भी लिखेगी
अम्मा,
मेरे गीत ब्याह के
मैँ गुनगुना लुंगी
अपनी लाज,
अपने उड़ते परवाज को
लगाकर पंख
भरुंगी एक उड़ान
अपनी मर्जी के . . .
अम्मा
मैँ जी लेना चाहती हूँ
और,
जीने के लिए
मेरा ब्याह हो
यह जरूरी तो नहीँ . . .
— सीमा संगसार
v nice
सीमा जी बहुत सुन्दर… और सवाल भी सही है …..
कविता पढ़ी। कुछ कुछ भाव समझ पाया। कविता के विषय और उसके भावों ने ह्रदय को छू लिया है। बधाई।